अध्ययनों व शोधों द्वारा यह पाया गया कि सामने वाले व्यक्ति पर हमारे शब्दों और लहज़ों का प्रभाव ४५% होता है, जबकि बॉडी लॅंग्वेज का प्रभाव ५५% होता है। कहने का मतलब कि हम बिना कुछ बोले ही बहुत कुछ कह जाते हैं।
...भारत के शास्त्रीय नृत्यों की बात करें, तो उनमें तो मात्र हाव-भावों व मुद्राओं द्वारा ही संपूर्ण कथा या दृष्टांत का मंचन कर दिया जाता है। वाद्यों से झरते संगीत के साथ नर्तकी अपने हाव-भावों व मुद्राओं के माध्यम से पूरी की पूरी कहानी दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर देती है। इस कला का सबसे सुन्दर उदाहरण- भरतनाट्यम् है।…
वास्तव में, ये सब चिह्न-मुद्रायें है क्या? आइए, इन्हें विस्तार से समझें। एक भाषा होती है, जिसमें शब्दों के माध्यम से अपने विचार सामने वाले के समक्ष रखे जाते हैं। यह कोई भी प्रांतीय या देशीय भाषा हो सकती है। परन्तु इसके अतिरिक्त एक भाषा ऐसी है, जो मुँह से नहीं बोली जाती। ...इस भाषा को शरीर की भाषा यानी बॉडी लॅंग्वेज कहा गया। इसमें व्यक्ति मात्र भावों, मुद्राओं व भंगिमाओं द्वारा ही अपने भीतर के विचारों को व्यक्त करता है। शोधकर्ताओं ने २०-३० वर्षों के शोध से यह पता लगाया कि यह भाषा अपनी बात को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है।
साधारणतः शब्दों द्वारा कही गई बात व शारीरिक मुद्राओं से व्यक्त किए गए विचारों में परस्पर सामंजस्य होता है। ...यदि कभी ऐसा हो कि व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्द और उसके शारीरिक भावों के बीच तालमेल, सामंजस्य न हो अर्थात् शब्द कुछ कह रहे हों और शारीरिक भाषा कुछ और कह रही हो, तो समझ जाना चाहिए कि वह व्यक्ति झूठ बोल रहा है। ...
सम्भवतः आपके भीतर यह प्रश्न कौंध रहा होगा कि आखिर क्यों शारीरिक भाषा हमें सत्य बोलने नहीं देती। क्या है इसके पीछे का विज्ञान? ...
परंतु यहाँ एक और तथ्य महत्त्वपूर्ण है- कुछ लोग जैसे कि अफसर, अभिनेता, टी.वी. उद्घोषक, नेता इत्यादि इतनी सफाई से झूठ बोलते हैं कि पता ही नहीं चलता। आखिर, ये लोग कैसे इतनी सफाई से झूठ बोल जाते हैं? इसके पीछे क्या कारण है?...
क्या कुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे से देख रहे ईश्वर से आपका कोई झूठ छुपा रह सकता है?
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