पाठकगणों, आप सबने अवश्य इन प्रक्रियाओं को देखा होगा-
1) बर्फ के एक टुकड़े को कुछ पर फ्रिज से बाहर रखने पर, वह बहते हुए अव्यवस्थित पानी का रूप ले लेता है।
2) चीनी या नमक की डली को पानी में डालने पर, धीरे-धीरे वह डली अपने आकार से विकृत होकर पानी में घुल जाती है।
जानते हैं, इन सब सामान्य सी दिखने वाली घटनाओं के पीछे विज्ञान-जगत का एक बहुत महत्वपूर्ण नियम काम करता है। इस नियम को जर्मन वैज्ञानिक रुडोल्फ क्लॉसियस ने नाम दिया है- एन्ट्रॉपी। किन्तु जहाँ वैज्ञानिकों ने भौतिक एन्ट्रॉपी की बात की, वहीं हमारे वैदिक ऋषियों ने सदियों पूर्व ही आध्यात्मिक एन्ट्रॉपी की बात कर दी थी। तो आइए जानते हैं और समझते हैं, विज्ञान-जगत का यह भौतिक एन्ट्रॉपी नियम कैसे हमारे जीवन में लागू होकर आध्यात्मिक एन्ट्रॉपी का रूप लेता है?
ऊष्मप्रवैगिकी (Thermodynamics) का दूसरा नियम यदि एन्ट्रॉपी के आधार पर रखा जाए, तो वह कहता है- इस विश्व में हर चीज़ विकृति की तरफ जाती है। अर्थात प्रत्येक वस्तु की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, बिखराव की तरफ जाने की।
... यह नियम कैसे हमारे जीवन में लागू होकर आध्यात्मिक एन्ट्रॉपी का रूप लेता है? जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए फरवरी’२१ माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!