
जिस आयु में बालक मिट्टी में खेलते हैं उसमें यह श्यामा मिट्टी को भभूति की तरह तन फट रमाकर बड़े- बड़े संन्यासियों जैसे ध्यान कर रहा है। मानो साक्षात् शिव की प्रतिमा हो।.. सच! अद्भुत है, माता श्यामा!
कैलाश का उत्तुंग शिखर... आज गर्व से और अधिक ऊँचा हो गया था। कारण था वह ‘विषय', जिस पर साक्षात् महादेव गीत गा रहे थे। उनके इस गीत को हम 'गुरु-गीता' नाम से जानते हैं। इस गीत की तानों में एक स्थान पर महादेव ने कहा- 'भवेदनन्तस्य शिवस्य चिन्तनम्'- गुरुदेव का चिंतन अनंत स्वरूप शिव का ही चिंतन है। 'अत्रिनेत्रः सर्वसाक्षी... श्री गुरुः कथितः प्रिये'- हे प्रिय! गुरुदेव पिनेत्रहित प्रत्यक्षतः शिव ही हैं।
वास्तव में तो गुरु, महाशिव से भी अधिक, महती सत्ता हैं। कारण? क्योंकि महादेव तो केवल सृष्टि या प्राकृतिक शक्तियों के ही लय-विलय का दायित्व निभाते हैं। पर गुरुवर तो एक शिष्य के मन के कुविचारों और कुसंस्कारों के संहारक हैं। उसके जीवन में शवत्व से शिवत्व का संचार करते हैं। कैसे? इस महीन सच्चाई को ठोस रूप से उजागर कर रहा है, यह लेख! ...जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए फरवरी’२१ माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!