अपना घर व्यक्तियों के भीतर न बनाएँ! djjs blog

जीवन संघर्षों का दूसरा नाम है जिसमें न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव आते हैं। कई बार तो ये संघर्ष ऐसे हो जाते हैं मानो नुकीली चट्टानों पर नंगे पाँव चलना हो, जिसमें तलवे पूरी तरह छलनी हो जाते हैं। और ऐसे में इन कठिन राहों पर चलने के लिए हम चाहते हैं कि हमें किसी का साथ मिले। ख़ैर लोग मिलते भी हैं और साथ चलते भी हैं किन्तु इस प्रक्रिया में हमारा उनसे जुड़ाव भी हो जाता है। हम उन पर निर्भर होने लगते हैं या यूँ कहें कि हम अपना घर उनके भीतर बनाने लग जाते हैं। घर, अर्थात् वह स्थान जहाँ हम सहज महसूस करते हैं, जहाँ हमें लगता है कि यहाँ मेरी भावनाएँ सुरक्षित हैं।

आप सभी को यह बहुत ही स्वाभाविक लग रहा होगा क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए उसे रिश्ते बनाने ही पड़ते हैं। पर फिर एक समय ऐसा भी आता है जब हमें लगता है कि इस सब के चलते हम अपने जीवन की डोर किसी और को दे बैठे हैं। वो डोर जिससे फिर हम संचालित होते हैं। ऐसा करके हम अपने व्यक्तित्व के सबसे महत्त्वपूर्ण भावात्मक पक्ष पर अपना अधिकार खो देते हैं। तब यदि कभी वे हमारे प्रिय किसी कारणवश हमें छोड़कर चले जाएँ तो हम उदास, परेशान व विचलित हो जाते हैं क्यूंकि उस समय हमारा घर भी उन्ही के साथ चला जाता है और हम अचानक से बेघर हो जाते हैं। बेघर होकर फिर हम अपने जीवन की उपयोगिता पर ही प्रश्न खड़ा कर देते हैं। यही निराशा और अकेलापन धीरे-धीरे तनाव में बदल जाता है। और कई बार तो इतना गहन हो जाती है कि व्यक्ति अपने जीवन का अंत करने का ही निर्णय ले लेता है।

आज न जाने कितनी ही रिपोर्ट व डाटा इस संबंध में भरे पड़े हैं। WHO के अनुसार हर साल 700,000 से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मर जाते हैं। इस संगठन के अनुसार आत्महत्या करने का खतरा उन लोगों में पाया जाता है जिनमें जीवन समस्याओं और तनावों से निपटने की क्षमता की कमी होती है। ये समस्याएं कोई भी हो सकती है- वित्तीय समस्याएं, संबंध टूटना या पुराना दर्द या कोई भयानक रोग।

अमरीकी गायक और संगीतकार इलियट स्मिथ 2003 में अपनी जान लेने से पहले अपने दर्द भरे गीतों के लिए प्रसिद्ध हुए थे। वे सिर्फ 34 वर्ष के थे। जिस दिन स्मिथ ने आत्महत्या की थी, उसी दिन उनका अपनी प्रेमिका से झगड़ा हो गया था और उनकी प्रेमिका ने खुद को स्नानागार में बंद कर लिया था। जब वह बाहर आईं, तो उन्होंने देखा, स्मिथ फर्श पर पड़ा हुए हैं। स्मिथ ने खुद के सीने में खंजर घोंप लिया था। जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराया गया लेकिन 20 मिनट बाद 21 अक्टूबर, 2003 को अस्पताल में ही इलियट स्मिथ की मृत्यु हो गई।

इस घटना को पढ़ने के बाद आपकी प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग हो सकती हैं परंतु यहाँ पर विचारणीय है, आखिर क्यूँ हम किसी से इतना बंध जाते हैं कि उनके उपलब्ध न होने पर हम घुटने लगते हैं या कई बार ऐसा कदम उठा लेते हैं जिससे फिर बाद में हम पछतावे के लिए भी शेष नहीं बचते। सज्जनों! ये सिर्फ स्मिथ के साथ ही नहीं हुआ, ये हम में से बहुत से लोगों की कहानी है; हाँ फर्क़ बस इतना है कि कुछ अपना जीवन ही समाप्त कर लेते हैं, कुछ जीवन भर दु:खी रहते हैं तो कुछ बदले की भावना में जलते रहते हैं।

इन सभी दुःखों के चलते हुए भी हम इनका समाधान खोजने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमें लगता है यह तो संसार की रीत है। परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं है। वास्तव में ये हमारे ही अभाव और विकार (दोष) हैं जिनके कारण हम अपना घर दूसरों के भीतर बनाते हैं और उन लोगों से इतना बंध जाते हैं। बन्धनों की गहनता कितनी खतरनाक हो सकती है, इस सन्दर्भ में संत एक प्रश्न करते हैं-

अलि पतंग मृग मीन गज, जरत एक ही आँच।

तुलसी ताकी कौन गति, जाको लागे पांच।।

भावार्थ, भंवरा, पतंगा, मृग, मछली और हाथी- ये सब एक-एक ही इन्द्रिय के अधीन होकर अपना जीवन समाप्त कर देते हैं। तो उनकी दशा क्या होगी जो पाँचों इन्द्रियों से दूसरों पर निर्भर होते हैं?

तो फिर हम क्या करें? इसका उत्तर भी संत स्वयं देते हैं- ‘स्वयं को जानो’ [Know Thyself], अपने आप को जानो, आप से जुड़ो। यही मन की सभी समस्याओं का समाधान है। संत, आगे, कहते हैं-

तुलसी ये तो पांच हैं, और भी होत पचास।

रघुवर जाकै रिदै बसे, ताको कौन त्रास।।

भावार्थ, जिनके हृदय में श्री राम वास करते हैं और जो सद्गुरु की चरण शरण का सहारा ले लेते हैं, उनपर पाँच तो क्या चाहे पचासों शत्रु भी एक साथ आक्रमण करें, तो भी उसका बाल तक बांका नहीं कर सकते।

पर अब यक्ष प्रश्न यह है कि हम स्वयं को कैसे जानें? हमारे भीतर उस परम सत्ता - श्री राम का वास कैसे हो? इसका समाधान हमारे पवित्र शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि स्वयं को जानने की सबसे श्रेष्ठ मार्ग है- "ब्रह्मज्ञान"। ब्रह्मज्ञान के द्वारा जब एक व्यक्ति के भीतर वह सदा निवासित परम सत्ता जागृत होती है तो वह स्वयं से जुड़ जाता है, अपने अन्दर की छुपी हुई संभावनाओं की खोज कर पाता है। और धीरे- धीरे ब्रह्मज्ञान आधारित ध्यान-साधना के निरंतर अभ्यास से वह आत्म-विजयी हो, इन दुःखों से बाहर निकल पाता है। तब वह अपना घर दूसरों के भीतर नहीं बनता, बल्कि अपने घर में ही सुरक्षति होकर आत्म-सम्मान का जीवन जीता है।

ब्रह्मज्ञान के विषय में और अधिक जानने हेतु देखें- https://www.djjs.org/blog/tan-to-mandir-hai-hriday-hai-vrindavan

References:

https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/suicide

 

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