18 अगस्त 2019 को अमरावती, महाराष्ट्र में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम में अनेक श्रद्धालुगणों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई| समय-समय पर इस स्थान पर गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं l मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम न केवल हमारे जीवन का आत्मनिरीक्षण करने का माध्यम हैं बल्कि अपनी आत्मा से जुड़ने का भी एक तरीका हैं l यह हमें जीवन में प्रभावी ढंग से प्राथमिकता देने तथा निर्णायक रूप से एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता हैं l
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं ने आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित एक भावपूर्ण भक्ति गीत 'गुरु अष्टकम' के साथ आध्यात्मिक प्रवचन की शुरुवात की और साथ ही उसमें श्लोकों के अर्थ की व्याख्या भी की l उन्होंने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा की वर्तमान समय में व्यक्ति ऐसे कौशल हासिल करने में लगा हुआ हैं जिसके द्वारा आजीविका अर्जित की जा सके l विश्व की परिवर्तनशील परिरेखा में कौशल बार - बार निरर्थक हो जाते हैं और इस कारण व्यक्ति अक्सर नया सीखने के लिए बाध्य हो जाता हैं l इस तीव्र गति से चलने वाले संसार में सीखना, भूलना और पुनः सीखना - ये वो चक्र हैं जिसमें व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन समाप्त हो जाता हैं l कौशल निर्माण की चाह में व्यक्ति जीवन का मुख्य उद्देश्य जो की मोक्ष या जन्म- मरण के चक्र से मुक्ति है उसी को भूल जाता हैंl
गुरु अष्टकम में गुरु के महत्व को स्पष्ट किया गया - गुरु मनुष्य को मृत्यु से शाश्वत अमरता प्रदान करते हैं l आदि गुरु शंकराचार्य जी कहते है कि मनुष्य में संसार के सभी गुण और कौशल हो सकते है लेकिन यदि गुरु की भक्ति न हो तो सब व्यर्थ हो जाते हैं l हमारे शास्त्रों में गुरु के चरणकमलों को आदरणीय व् पूजनीय बताया हैं तथा उनके चरणों की उपासना को सर्वोच्च माना गया हैं l गुरु अष्टकम से उदाहरण देते हुए हुए साध्वी जी ने कहा कि भौतिकवादी दृष्टिकोण में, एक सुन्दर शरीर, अच्छी दिखने वाली पत्नी, प्रसिद्धि और धन सभी सफलता के निशान हैं मगर बुद्धिमान के अनुसार, भौतिक सफलता के सभी निशान दीर्घकाल में निराशा की और ले जाते हैं l एक व्यक्ति को दुःख का अनुभव करना पड़ता हैं यदि उसके सभी गुणों के बावजूद भी गुरु के प्रति कृतज्ञता नहीं हैं l वर्तमान समय के पूर्ण गुरु श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि गुरु को अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए कुशल लोगों की तलाश करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि वे ऐसे व्यक्तियों का चयन करते हैं जिनके मन में समर्पण भाव हो ताकि उन्हें किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए सक्षम बनाया जा सके l
गुरु अष्टकम के एक अन्य श्लोक से उदाहरण लेते हुए साध्वी जी ने कहा कि हमारे इतिहास में अनेक बुद्धिजीवी - कवियों और लेखकों के उदाहरण मिलते हैं जो अंततः दिशाहीन हो गए और बेईमान हाथों द्वारा उनका दुरूपयोग किया गया l यद्यपि ये अत्यधिक कुशल लोग है लेकिन उनके लिए अकारण असफलता का स्वाद चखने का मुख्य कारण जीवन के उद्देश्य के प्रति उनकी लापरवाही एवं निश्चिंतता हैं l गुरु के चरण शिष्यों के ध्यान का आधार माने गए हैं l केवल एक पूर्ण गुरु में अपने शिष्य को ध्यान की तकनीक प्रदान करने की क्षमता होती हैं l ध्यान के पथ पर चलने वाले एक शिष्य में प्राकृतिक रूप से अनेकों प्राकृतिक गुण समाविष्ट होते हैं और साथ ही वह भौतिक संसार में सक्रिय और केंद्रित रहता हैं l आध्यात्मिक कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने स्वयं के कल्याण के लिए मूल्यवान ज्ञान अर्जित किया l