हम एक ऐसे समय में जी रह रहे हैं, जहां हर कोई अपने जीवन को गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक विलासिता, सुंदर कलाकृतियों, कपड़ों और आभूषणों के साथ अपने घरों को भरने में व्यस्त है। लेकिन इस होड़ में और क्षणिक सुख की खोज में, हम करुणा, विनम्रता, कृतज्ञता, सहानुभूति और ईमानदारी के आभूषणों से हृदय को पूरी तरह से वंचित करते जा रहे हैं| जब-जब मानव हृदयों में अंतर्निहित यह सुंदर विशेषताएं समाप्त होने लगती है तो यह सभ्यता व संस्कृति के विनाश का ही प्रतीक है| यूँ तो कहा जाता है कि मानव हृदय ईश्वर का मंदिर है और इसी कारण यह ऐसे सभी दिव्य गुणों का स्रोत है| आज आवश्यकता है तो केवल आंतरिक जागरण द्वारा जीवन में इन्हें फिर से स्थापित करने की।
आध्यात्मिक दिव्यता द्वारा इस जागरूकता को लाने के श्रेष्ठ प्रयास के अंतर्गत श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने जम्मू-कश्मीर में 10 अप्रैल, 2018 को एक संगीतमय कार्यक्रम "भज गोविंदम" सम्पन्न किया। सुन्दर धुनों में पिरोए दिव्य आध्यात्मिक संदेशों को संत समाज द्वारा उपस्थित लोगों में प्रसारित किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री जयंती भारती जी ने समर्पण, कृतज्ञता व भक्ति-प्रेम जैसे दिव्य गुणों को विकसित करने के लिए लोगों को अपने प्रेरणादायक विचारों से प्रेरित किया|
साध्वी जी ने बताया कि ‘आत्मा’- जो उस परम आत्मा का अंश है, परमानंद का असीम स्रोत है। आनंद के इस दिव्य स्रोत को ध्यान की सनातन विधि द्वारा परमात्मा से जुड़कर ही पाया जा सकता है। आज के समय के पूर्ण सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी की असीम अनुकंपा व कृपा से हर मानव ‘ब्रह्मज्ञान’ की शाश्वत और वैज्ञानिक विधि द्वारा ईश्वरीय अनुभूति को पाकर निरंतर शाश्वत दिव्य संगीत में डूबा रह सकता है|
भजनों और प्रवचनों के रूप में सुंदर प्रस्तुतियों को सुनकर, भक्तों ने जीवन में आध्यात्मिक लक्ष्य, ईश्वर और सतगुरु की महत्वता को समझा। हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों ने कार्यक्रम व संस्थान के प्रयासों की खूब सराहना भी की। अंत में, साध्वी जी ने सभी से आग्रह किया कि विषयों की क्षणभंगुरता की ओर उन्मुख न होकर सतगुरु की शरणागति हो ईश्वर दर्शन का लाभ उठाएं| जब एक शिष्य "सतगुरु" द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलता है, तो जीवन की विपत्तियों और बाधाओं से मुक्त होता है और तब आत्मा ही जीवन का पथ प्रदर्शित करती है| इस प्रकार, व्यक्तिगत और व्यावसायिक गतिविधियों में व्यस्त होने के बावज़ूद भी जीवन का हर एक क्षण आत्मिक उत्थान के अवसर के रूप में ही दिखने लगता है|
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