देवी सरस्वती के हाथों की वीणा, भगवान कृष्ण की बंसी, भगवान शिव का डमरू और भगवान विष्णु का शंख- आत्मा के शाश्वत संगीत की ओर संकेत करता है जो हमें हमारे अंतिम लक्ष्य- मुक्ति को प्राप्त करने में मदद करता है।
हमारे ग्रंथों ने स्पष्ट उच्चारण किया-
बिना बजाये निस-दिन बाजे घंटा- शंख- नगारी रे.. !!
बैरा सुनी-सुनी मस्त होत है तन की सुदी बिसारी रे.. !!
अंतर्घट में बिना प्रयास ही घंटी, शंख और नगाड़े बजते हैं, बहरा व्यक्ति भी इसे सुन आनंदित और मस्त हो जाता है।
अनहद नाद आत्मा और संपूर्ण सृष्टि का प्रारंभिक कंपन है और इंद्रियों से परे है। यह दिव्य अलौकिक संगीत केवल पूर्ण सतगुरु की कृपा से ही सुना जा सकता है जो कि आंतरिक जागृति के प्रवेश द्वार को खोल सकते हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने 24 जून 2018 को लुधियाना, पंजाब में भगवान के साथ युगांतरकारी संबंध स्थापित करने के रूप में दिव्य आंतरिक संगीत के महत्व पर बल देते हुए एक भक्ति संगीत कार्यक्रम भजनांजलि का आयोजन किया। परम पूज्य श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन के तहत प्रचारकों द्वारा रचित दिव्य भजन प्रस्तुतियों से एक दिव्य वातावरण साकार हो उठा। साध्वी सौम्या भारती जी ने श्रोताओं को प्रवचनों के माध्यम से जागृति के उच्चतम ज्ञान की तलाश करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से सभी वेद, उपनिषद, पुराण, गीता और अन्य ग्रंथों के सार को सभी के आगे प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
साध्वी जी ने समझाया कि यह दिव्य आंतरिक अनहद संगीत मनुष्य द्वारा ईश्वर से संपर्क साधने की एक सीढ़ी है और हमारे अंदर और बाहर की सभी नकारात्मक कंपन को नष्ट करने में भी कारगर है। हमारा समाज आज वासना, लालच, नफरत, भय और अहंकार के दुष्प्रभावों से पीड़ित है और इन दोषों की उत्पत्ति हमारी भीतरी विचार प्रक्रिया से बढ़ रही है। ब्रह्मज्ञान की ध्यान तकनीक के दौरान अनुभव किया जाने वाला दिव्य अनहद नाद हमें अपने दिमाग और बुद्धि को शुद्ध करने में मदद करता है और इस तरह हमें शांति और आनंद के महासागर तक ले जाता है।
इस तरह के भक्तिपूर्ण गायन लोगों को परम सत्य का अनुभव करने की इच्छा की ओर प्रेरित करते हैं और आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर शिष्यों में प्रेम और भक्ति की निरंतर ऊर्जा पैदा करते हैं। कार्यक्रम में स्पष्ट बताया गया कि जीवन की अवधि में सभी को उच्चतम ज्ञान अर्थात ब्रह्मज्ञान के लिए प्रयास करना चाहिए और ईश्वरीय दर्शन का लाभ अवश्य लेना चाहिए। इस प्राप्ति हेतु वर्तमान समय के पूर्ण तत्ववेता सतगुरु के श्री चरणों में आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता है। केवल सतगुरु ही मानवीय पतन को रोक कर उसे पुन: उच्च आध्यात्मिक शिखरों की ओर अग्रसर कर सकते हैं और केवल इस ब्रह्मज्ञान की दिव्य अग्नि ही मानव के सभी पापों को राख कर सकती है। इस कार्यक्रम ने उपस्थित लोगों को ज़िन्दगी के सही उद्देश्य का आत्मनिरीक्षण करने में मदद की और एक नई शुरुआत के लिए प्रेरित भी किया।