आज विश्व भर के युवा तनावग्रस्त है। अध्ययन से यह बात पता चली है कि 80% लोग अपने दैनिक जीवन में तनाव का सामना करते हैं जो कि आगे चलकर अवसाद का रूप धारण कर लेता है। इसके अतिरिक्त यह स्वास्थ्य सम्बन्धी कई अन्य समस्याओं जैसे सिर दर्द, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली इत्यादि का भी मूल कारण है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संस्थापित एवं संचालित एक सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था है जो समाज के ऐसी ही गंभीर विषयों के समाधान हेतु अग्रसर है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में दिनांक 31 जनवरी 2019 को इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग टेक्नोलॉजी एंड एप्लाइड न्यूट्रिशन द्वारा इसी गंभीर विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने के लिए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया।
साध्वी प्रजीता भारती जी ने बताया कि आधुनिक मनोविज्ञान केवल जैविक एवं मनःस्तिथि के ऊपर आश्रित है एवं यह आध्यात्म के आयामों से पूर्णतया अनभिज्ञ है। इसी कारणवश मनोवैज्ञानिक शोध एवं सलाह एक निश्चित सीमा तक ही सहायक सिद्ध होते हैं। मानव मन की उत्तेजना को शांत करने एवं उनकी मनःस्तिथि को नियंत्रित करने के लिए मनोविज्ञान में सकारात्मक दृष्टिकोण की सलाह के साथ कुछ दवाइयों का उपयोग किया जाता है जो कि मनोरोग को दूर करने में उपयोगी भी सिद्ध हुई है किन्तु फिर भी यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज भी मनोवैज्ञानिक तनाव के समूल नाश की सही पद्द्ति से अनभिज्ञ है।
इस समस्या के वास्तविक समाधान हेतु आध्यात्म की ओर रूख करते हुए साध्वी जी ने भगवद गीता में निहित भगवान श्री कृष्ण के सन्देश के माध्यम से समझाया कि जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में ज्ञान के अभाव में भय एवं मोहासक्ति के कारण अत्यंत मानसिक वेदना से ग्रसित था तब भगवान श्री कृष्ण ने उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर, स्वयं के वास्तविक रूप से परिचित कराया था और उसकी वेदना का अंत किया था। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा था कि आत्मा अजर और अमर है जिसका मन, बुद्धि एवं इस नश्वर देह से कोई सम्बन्ध नहीं है। एक पूर्ण गुरु के जीवन में पदार्पण से ही इस तथ्य को समझा जा सकता है।
अर्जुन की ही भांति आज हम सब भी एक युद्ध के मैदान में हैं जहां हमें असफलता, बीमारी, और अंततः मृत्यु जैसे बड़े खतरों का सामना करना पड़ता है। एक पूर्ण संत की शरणागत हो ब्रह्मज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है जिसके माध्यम से जीवन रुपी युद्ध को ना केवल लड़ा जा सकता है अपितु विजय श्री का भी वरण किया जा सकता है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी वर्तमान समय में जनमानस को इसी ब्रह्मज्ञान द्वारा पोषित करने के लिए संकल्पित है।