16 से 20 मई 2018 तक पंजाब के गोबिंदगढ़ में पांच दिवसीय शिव कथा का सुन्दर आयोजन किया गया| कथाव्यास साध्वी दिवेशी भारती जी ने कथा के माध्यम से समझाया कि यूँ तो संस्कृत शास्त्रों में भगवान शिव प्रलय के स्वामी के रूप में वर्णित हैं लेकिन वह एक अत्याचारी व निर्दयी देव नहीं है। ब्रह्मांड में संतुलन बहाल करने के लिए ही वह विनाश करते हैं। त्रिपुरांतक से सम्बन्धित कथा इसी परिदृश्य का एक उपयुक्त उदाहरण है। कथा में वर्णित है कि भगवान शिव ने ताराकाक्ष, विद्यूंमाली और कमलाक्ष नामक इन तीन राक्षसों को मार डाला, जो उनके भक्त भी थे| इस घटना के पीछे मुख्य कारण रहा- उनके द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी के शांतिपूर्ण माहौल में बाधा डालना। एक आदर्श स्थापित करने के लिए भगवान शिव स्वयं अपने ही भक्तों को सबक सिखाने से पीछे नहीं हटे| इसी तरह, उनके द्वारा किया गया विनाश कभी भी दिशाहीन या उद्देश्यविहीन नहीं होता| विनाश वास्तव में अच्छाई की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया है।
आज, हम मनुष्यों को भी उन सभी तत्वों को नष्ट करने की जरूरत है जो हमारे आंतरिक विकास में बाधा साबित हो रहे हैं। हमें उन सभी परिस्थितियों को भी बदलने की जरूरत है जो हमें पतन के मार्ग पर ले जा रहे हैं। लेकिन हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? इसका उत्तर देने के लिए, हमें सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है कि भगवान शिव न्याय हेतु अपनी आंतरिक शक्ति को सही दिशा प्रदर्शित करने में सक्षम हैं। भगवान शिव को ‘आदियोगी’- शाश्वत तपस्वी के रूप में भी जाना जाता है। वह ऐसी तपस्वी हैं जिन्होनें न केवल ब्रह्मज्ञान को प्राप्त किया हुआ है बल्कि स्वयं उसका स्रोत भी हैं। उनका आध्यत्मिक तृतीय नेत्र जाग्रत है और वह मनुष्यों पर अपना प्रेम और अनुग्रह लुटाते हैं| लेकिन उस आदियोगी के महत्व और मूल्य को वास्तव में समझने के लिए, मनुष्य को एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता होती है। केवल एक सच्चा गुरु ही इंसान को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर सकता है और हमें आदियोगी शिव से जोड़ सकता है| तभी हम उनकी कृपा और प्रेम को ग्रहण कर सकते हैं| केवल एक आत्मजाग्रत इंसान ही ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु की कृपा से दिव्य नेत्र खुलने के बाद अपने भीतर गहराई से गोता लगा सकता है। इसलिए, आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर स्वयं को स्थापित करने के लिए हमें एक आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है। इसी दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान के साथ हम एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं, भीतरी विकारों को नष्ट कर सकते हैं और आंतरिक समरसता प्राप्त कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए, हमें अपनी व्यक्तिगत आध्यात्मिक यात्रा शुरू करनी है जो कि श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से शुरू की जा सकती है|