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हमारे शास्त्रों में यह उल्लेख है कि जीव पर ईश्वर की प्रथम कृपा द्वारा मानव तन की प्राप्ति होती है, क्योंकि मानव तन के माध्यम से ही जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो सकता है। ईश्वर की दूसरी कृपा द्वारा मानव पवित्र शास्त्र- ग्रन्थों का अनुकरण करता है, जिससे ईश्वर को पाने हेतु ब्रह्मज्ञान की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। हालांकि, मानव को ब्रह्मज्ञान जैसे गूढ़ विषय को समझाने हेतु सत्संग या आध्यात्मिक प्रवचनों में भी भाग लेना चाहिए। लोगों को इस दिशा में प्रेरित करने के लिए 21 अक्टूबर, 2018 को अमृतसर में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम की व्यवस्था की गई थी।

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के प्रतिनिधियों ने वर्तमान के पूर्ण सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की महिमा का गुणगान करते हुए दिव्य प्रवचनों को रखा। साध्वी जी ने भी अपने विचारों के माध्यम से बताया कि ऐसे गुरु के चरण कमलों में शत-शत बार शीश झुकाना चाहिए जिन्होंने आत्मा को अज्ञानता, माया और भ्रम के अंधकार से मुक्त कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान किया। साध्वी जी ने आगे कहा कि सांसारिक शिक्षा जीवनयापन हेतु मात्र साधनों को प्रदान करती है। यह शिक्षा हमें पढ़ना, लिखना और शिष्टाचार सिखाती है ताकि हम अपनी आजीविका कमा सकें। हालांकि, मनुष्यों के लिए अपने उद्देश्य को पूरा करने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल सांसारिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है। जीवन उद्देश्य की प्राप्ति हेतु शिक्षा के साथ-साथ ब्रह्मज्ञान दीक्षा की भी अनिवार्यता है। दीक्षा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'देखना'। दीक्षा का अर्थ है ईश्वर का दर्शन। विज्ञान के अनुसार विश्वास के लिए देखना अनिवार्य है। इसी प्रकार जब एक भक्त स्वयं के भीतर भगवान के वास्तविक रूप को देखता है, तो निर्माता और उसकी पूरी सृष्टि का अनुभव हो जाता है, यही वास्तविक ज्ञान है।

साध्वी जी ने महान शास्त्र श्रीरामचरितमानस का उदहारण देते हुए समझाया कि इस ज्ञान के बिना कोई भी ईश्वर और उसकी लीलाओं पर विश्वास नहीं कर सकता है। ज्ञान ही ईश्वरीय प्रेम का आधार है और समय के साथ-साथ यह विश्वास को दृढ़ बनाता है। यहां वर्णित ईश्वरीय प्रेम, संसार में लोगों के संबंधों में विद्यमान सांसारिक स्नेह या आसक्ति से भिन्न हैं। आसक्ति क्षणिक है जो समय के साथ-साथ बदलती रहती है परन्तु ईश्वरीय प्रेम समय के साथ दृढ़ होता जाता है। सांसारिक प्रेम परिस्थितियों पर आधारित है, परन्तु भगवान से प्रेम, दिव्य और बिना शर्त के है। सांसारिक प्रेम में जब उम्मीद पूरी नहीं होती तो वह नकारात्मक और कड़वा हो जाता है, वहीँ दूसरी ओर दिव्य प्रेम मात्र त्याग और भक्ति पर आधारित होता है। साध्वी जी ने विचारों को विराम देते हुए कहा कि बुद्धिमान, कभी भी सांसारिकता की प्राप्ति के लिए भगवान से प्रार्थना नहीं करते, बल्कि वह तो ईश्वर से वास्तविक, दिव्य प्रेम व उनकी सेवा की प्रार्थना करते है।

कार्यक्रम में मौजूद श्रद्धालुओं ने प्रवचनों को श्रवण कर स्वयं को भाग्यशाली अनुभव किया व अपने साथ दिव्यता का सच्चा उपहार लेकर लौटें।
 

Brahm Gyan Distinguishes between Worldly and True Knowledge in Monthly Spiritual Congregation, Punjab

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