सतगुरु के पवित्र सान्निध्य में सुख, शांति, आनंद और दिव्यता का अनुभव होता है। इसी श्रृंखला में हर माह गुरु कृपा के माध्यम से प्रसारित प्रेरणादायक सत्संग विचार, भक्ति संगीत शिष्यों में निःस्वार्थ सेवा की भावना को दृढ़ करती है ताकि वे विश्व शांति के महान मिशन की ओर अग्रसर हो सकें। श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य सन्देशों ने शिष्यों को महान व अनुकरणीय चरित्रों का आकार दिया है जिनकी ओर आस लगाए आज दुनिया निहार रही है। ब्रह्मज्ञान को पाकर साधक ब्रह्माण्ड रूपी पावरहाउस से जुड़ जाते हैं जिसके माध्यम से वे ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपनी ओर खींचते हैं जिस कारण वह सभी आयामों पर पूर्णता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। इन्हीं दिव्य विचारों के साथ दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम में 3 जून 2018 को मासिक भंडारा कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें उपस्थित सभी जन प्रेम और करुणा के अमृत से सराबोर नजर आए।
कार्यक्रम में विभिन्न शहरों से भारी संख्या में श्री आशुतोष महाराज जी के ब्रह्मज्ञानी शिष्य अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर फिर से उत्साह के साथ अग्रसर होने के लिए उपस्थित रहे। सभी आयु वर्ग के भक्त दिव्य विचारों और दिव्य कार्यों में खुद को पुन: संलग्न करने और आध्यात्मिक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रहने के लिए इस मासिक सभा में पहुंचे। श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्य व शिष्याओं द्वारा आध्यात्मिक विचार व भावपूर्ण भजन प्रस्तुत किए गए।
प्रचारकों ने अपने अमूल्य अनुभव साझा करते हुए शिष्यत्व से सम्बन्धित कई ऐतिहासिक घटनाओं की चर्चा की। उन्होंने बताया कि गुरु एक शिष्य को कभी नहीं छोड़ता और उसके दिमाग की सतहों में उठने से पहले ही प्रत्येक विचार को पढ़ लेता है। जब एक शिष्य भौतिकवादी सुख के विचारों में उलझ जाता है तो गुरु शिष्य के कल्याण के बारे में सोचते हैं। जब वासना का तूफान शिष्य के दिमाग में प्रबल होता है तब केवल गुरु ही उस तूफान के बाद के भयानक अंत की कल्पना कर सकते हैं। जब शिष्य अनुराग में पड़कर नासमझी कर बैठता है तो गुरु सतर्क होते हैं। शिष्य सांसारिक सुखों को देख प्रसन्न हो उठता है लेकिन गुरु स्पष्ट रूप से अपने शिष्य के लिए दुनिया में उदासीनता को देख सकते हैं। जब शिष्य अध्यात्म पथ को अधूरा छोड़ भागना चाहता है तो भी सतगुरु उसके साथ रहना चाहते हैं। जब जीवन पतझड़ की तरह बन जाता है तो गुरु कृपा की वर्षा करते हैं। जीवन के हर पड़ाव पर गुरु सुबह की किरण के रूप में प्रकट रहते हैं।
बौद्धिक क्षमता से गुरु की कृपा को समझना असंभव है। जैसा कि स्वामी योगानंद परमहंस ने कहा- "जो लोग दिव्य नेत्र के माध्यम से पूर्ण सतगुरु में निहित दिव्यता का एहसास करते हैं, वे जानते हैं कि उनकी दिव्य लीलाओं में केवल आनंदित और प्रसन्न हुआ जा सकता है, लेकिन उन्हें कभी समझाया नहीं जा सकता!"
उपस्थित लोगों ने खुद को विश्वास और भक्ति भावनाओं से सराबोर पाया। सच में, धन्य हैं वो सभी जो श्री आशुतोष महाराज जी के समय में नए युग की संरचना को साकार होते देख रहे हैं। भाग्यशाली हैं वे जिन्हें ब्रह्म ज्ञान के दुर्लभ विज्ञान से आत्मजागृत होने का सुनहरा मौका मिला है।
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