ईश्वरीय प्रेम व अध्यात्म के सार को जन-जन तक पहुंचाने हेतु श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन तले दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 28 अगस्त 2022 को ‘भावांजलि’ नामक भजन संध्या कार्यक्रम का ढिलवां, पंजाब में आयोजन किया गया। ज्ञान-भक्ति से ओत-प्रोत प्रवचनों व आत्म-जाग्रति के भावों से सराबोर सुमधुर भक्तिपूर्ण भजनों के मिश्रण ने श्रद्धालुओं को अंतर्जगत की गहराइयों में उतार दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ अज्ञान तम को हरने वाले ब्रह्मज्ञान प्रदाता; प्रेम व करुणा के सागर- सतगुरु के श्री चरणों में प्रार्थना अर्पित कर किया गया। कार्यक्रम में भारी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति देखी गई। सम्पूर्ण वातावरण भजनों की मंगल ध्वनि से गुंजायमान हो उठा और उपस्थित श्रोताओं ने स्वयं को भक्ति रस से सराबोर पाया।
प्रवक्ता साध्वी वैष्णवी भारती जी ने मानव जीवन के परम लक्ष्य, जीवन में पूर्ण सतगुरु की आवश्यकता एवं अध्यात्म के मार्ग की व्याख्या करते हुए शास्त्रों में निहित गहन मर्मों को उजागर किया। इतिहास रचने वाले असाधारण व्यक्तित्वों और ग्रंथों में वर्णित उनके जीवन का चित्रण करते हुए साध्वी जी ने भक्त श्री हनुमान का उदाहरण दिया। अपार शक्ति व गुणों से युक्त होने पर भी हनुमान जी जीवन के परम लक्ष्य को जानने हेतु विचलित रहते थे। इसलिए एक दिन हनुमान जी ने भगवान शिव का आह्वान किया और उनके समक्ष अपनी इसी जिज्ञासा को रख दिया। उत्तर स्वरूप भगवान शिव ने उनसे ही एक प्रश्न पूछ लिया- तुम कौन हो? भगवान ने स्थूल शरीर से जुड़े किसी भी चिन्ह जैसे कि नाम, परिवार, शहर, देश, व्यवसाय इत्यादि को उनकी सच्ची पहचान स्वीकार नहीं किया। तत्पश्चात भगवान ने मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य को उजागर करते हुए समझाया कि आत्मा का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना और परमात्मा में विलीन हो जाना ही जीवन का परम उद्देश्य है। भगवान ने हनुमान को ब्रह्मज्ञान प्रदाता पूर्ण सतगुरु की शरण में जाने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि पूर्ण गुरु ही जिज्ञासु के तृतीय नेत्र या दिव्य चक्षु को सक्रिय कर उसे आत्म-साक्षात्कार करवाने में सक्षम होते हैं।
सतगुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ईश्वरमयी बन जाता है। साध्वी जी ने समझाया कि भजन का सही अर्थ ही यही है- ईश्वर के उस शाश्वत नाम के साथ निरंतर जुड़े रहना जो ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सुमिरन से प्रकट होता है। सतगुरु को पाकर ही शिष्य वास्तविक भक्ति व अध्यात्म को समझ पाता है। तत्पश्चात गुरु के चरण कमलों में समर्पण कर शिष्य आंतरिक संतुलन व चेतना की ऊंचाइयों को छूने का मार्ग प्राप्त करता है। गुरु विशुद्ध प्रेम का सागर होते हैं; जहाँ से हर व्यक्ति अपनी पिपासा को शांत कर तृप्ति प्राप्त करता है। सतगुरु हर प्राणी पर अपनी दया व कृपा बरसाने के लिए ही धरा पर अवतरित होते हैं।
साध्वी जी ने कहा कि आज श्री आशुतोष महाराज जी ने ब्रह्मज्ञान के इस दुर्लभ विज्ञान पर न केवल प्रवीणता हासिल की है, बल्कि असंख्य आत्माओं को इसे प्रदान भी किया है। भजनों व प्रवचनों की सुंदर प्रस्तुतियों द्वारा भक्तों ने जीवन में अध्यात्म की महत्ता से जुड़े गहन तथ्यों के बारे में जाना। उपस्थित श्रद्धालुओं ने संस्थान के प्रयासों की सराहना की और वातावरण में कार्यक्रम द्वारा प्रसारित दिव्यता व शांति से वे मंत्रमुग्ध दिखाई दिए।