एक अच्छी नौकरी, भारी भरकम वेतन, उच्च कुलीन वर्ग से दोस्ती, उपभोग की सभी वस्तुओं की उपलब्धता - क्या यही वास्तविक खुशहाल जीवन की कसौटी है? इसका जवाब है- नहीं। जिस प्रकार नाट्य मंच पर एक धनाढ्य व्यक्ति का किरदार अदा करने से कोई वास्तविकता में धनी नहीं बन जाता, ठीक उसी प्रकार जीवन में इन भौतिक वस्तुओं की उपलब्धता भी हमें वास्वतिक सुख एवं आनंद प्रदान नहीं कर पाती। हमारे सभी धर्म ग्रंथों में यह उद्घोषित है कि जीवन में वास्तविक आनंद की प्राप्ति केवल आध्यात्मिक जाग्रति द्वारा ही संभव है। जन-मानस को आनंद के इसी दिव्य स्त्रोत से अवगत कराने के उद्देश्य से डीजेजेएस द्वारा बैंकॉक के विभिन्न स्थानों जैसे- शिव मंदिर, विष्णु मंदिर -बैंकॉक,थाईलैंड और थाई नेपाली मंदिर, पटाया, थाईलैंड इत्यादि में दिनांक 13, 14, एवं 20 अक्टूबर, 2019 को सत्संग कार्यक्रम आयोजित किये गए।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी अम्बुजा भारती जी एवं साध्वी शैलासा भारती जी ने समझाया कि निःसंदेह मानव आज भौतिक एवं प्रोद्योगिक रूप से काफी उन्नत हो चुका है, किन्तु, भौतिक प्रगति एवं आधुनिकता के उपरान्त भी उसके जीवन में सुख एवं आनंद का अभाव है। ईश्वर ने हमारा निर्माण नेकी, सचाई एवं आध्यात्म के मार्ग पर चलने हेतु किया था किन्तु आगे बढ़ने की होड़ में हम झूठ एवं अनैतिकता के मार्ग पर चलने से भी नहीं चूकते और विश्व शान्ति के विपरीत द्वेष एवं अशांति की भावना को ही फैलाते हैं। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक- डीजेजेएस) सदैव कहा करते हैं कि शान्ति, सद्भाव एवं सार्वभौमिक भाईचारे को केवल ब्रह्मज्ञान द्वारा ही स्थापित किया जा सकता है। ब्रह्मज्ञान से ही मनुष्य का विवेक जाग्रत होता है एवं वह बाहरी आवरण से प्रभावित ना होकर आतंरिक रूप से लोगों से सद्भावना का सम्बन्ध स्थापित करता है।
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति एक ब्रह्मनिष्ठ गुरु द्वारा ही संभव है। आत्म जाग्रत हो कर ही हम स्वयं के वास्तविक रूप को पहचान पाते हैं एवं आध्यात्मिकता के दिव्य मार्ग की ओर अग्रसर हो पाते हैं। ध्यान-साधना की गहराइयों में उतर हम अपने मन की मलिनताओं से मुक्त हो पाते हैं एवं हमारे भीतर एवं बाह्य वातावरण में भी सकारात्मक तरंगों का संचार होता है। आत्म जाग्रति द्वारा ही विश्व में प्रेम, सौहार्द एवं सार्वभौमिक भाईचारे को स्थापित किया जा सकता है।
फ़ूल की सुगंध सदैव हवा की दिशा में फैलती है किन्तु मानवीय गुणों की सुगंध हर दिशा में फैलती है। जब मनुष्य, सर्व शक्तियों के पुंज, स्वयं से जुड़ जाता है तब उसके अंदर सभी गुण विकसित होते हैं एवं वह त्रुटि एवं दोष रहित व्यक्तित्व के साथ आदर्शपूर्ण जीवन जीने का आनंद उठा पाता है।