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वैदिक संगोष्ठी की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए, दिव्य ज्योति वेद मन्दिर थिरुवनन्थपुरम, केरल पहुँचा। यूँ तो, दिव्य ज्योति वेद मन्दिर की टीम ने बहुत से वैदिक अनुरक्तों से भेंट की और वैदिक विषयों पर विशिष्ट चर्चा की, इनमें से दो मुख्य स्थान हैं-

DJVM steps ahead for Uttar Bharat and Dakshin Bharat unification through Vedic Sangoshthi | Kerala

1. श्री अन्जनेयक्षेत्रम् देवस्थान

दिव्य ज्योति वेद मन्दिर की पूरी टीम को श्री अन्जनेयक्षेत्रम् देवस्थान में आमंत्रित किया गया। वहाँ के मन्दिर समिति के कार्यकर्ताओं ने दिव्य ज्योति वेद मन्दिर का भव्य स्वागत किया। परिसर में पहुँचने के उपरांत, ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों ने शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रो का उच्चारण किया व देवस्थान द्वारा आयोजित मुख्य पूजन अनुष्ठान में भाग लिया। श्री ई. वी. उपेन्द्रन पोट्टी, अध्यक्ष मधवा तुलु ब्राह्मण समाज, त्रिवेंद्रम दिव्य ज्योति वेद मन्दिर की समस्त टीम से मिलकर गद-गद हो उठे। श्री पोट्टी जी ने दिव्य ज्योति वेद मन्दिर द्वारा कृत रुद्री पाठ के audio-visual को सुनकर सहर्ष लिखित समर्थन प्रदान किया। दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान का सन्देश पाने के उपरांत मन्दिर समिति के सभी सदस्य श्रद्धावत भावों से ओत-प्रोत हो उठे एवं संस्थान द्वारा थिरुवनंथपुरम क्षेत्र में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा सत्संग कार्यक्रम आयोजित करने हेतु अपनी इच्छा प्रकट की।

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2. शिवगिरी मठ

१९वीं शताब्दी के पूर्ण गुरु श्री नारायण गुरुदेव द्वारा स्थापित, पवित्र शिवगिरी मठ प्राकृत छटा के बीचों बीच स्थित है। दिव्य ज्योति वेद मन्दिर के कार्यकर्ताओं ने स्वामी सच्चिदानन्द, अध्यक्ष एवं स्वामी शारदानन्द, कोषाध्यक्ष से विशिष्ट भेंट की व दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मिशन से परिचित करवाते हुए ब्रह्मज्ञान एवं वेदों के प्रचार प्रसार पर विस्तृत चर्चा की।

इस पूरी यात्रा में साध्वी दीपा भारती जी एवं स्वामी प्रदीपानन्द जी ने सभी को ब्रह्मज्ञान का सन्देश देते हुए दिव्य ज्योति वेद मन्दिर द्वारा वेदों के लिए किये जा रहे वृहद् कार्य से अवगत करवाया। यह गर्व का विषय है कि केरल प्रदेश में जहाँ शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा, कृष्ण यजुर्वेद व सामवेद अत्यधिक प्रचलित है वहाँ ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा उच्चारित शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी माध्यन्दिन शाखाकृत को सहर्ष स्वीकारा व सराहा गया। यह सही माइने में उत्तर भारत व दक्षिण भारत की अदभुदत वैदिक संस्कृति का सम्मलेन है। और यही वास्तव में राष्ट्रीय एकीकरण का समभाव ही है।

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