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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा वेबकास्ट श्रृंखला की अगली कड़ी में, रविवार, 9 जनवरी, 2022 को नूरमहल, पंजाब से एक प्रेरणादायक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। इसे डीजेजेएस के यूट्यूब चैनल पर वेबकास्ट के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। दुनिया भर में रहने वाले श्री महाराज जी के हजारों शिष्य इस वेबकास्ट श्रृंखला के 89वें संस्करण से लाभान्वित हुए।

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कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुई। इसके बाद श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों द्वारा भावपूर्ण सुमधुर भजनों का गायन किया गया। तदोपरांत, गुरूदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य, स्वामी योगेशानंद जी ने ‘कभी निराश न होना’ विषय पर प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किए तथा सभी को अपनी आंतरिक शक्ति से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

स्वामी जी ने स्पष्ट रूप से समझाया कि ‘आंतरिक शक्ति’ आत्मा की शक्ति है, जो मात्र ‘दिव्य ऊर्जा’ से जुड़कर ही प्राप्त हो सकती है। आत्म-खोज के पथ पर किसी को रुकना नहीं चाहिए, परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों। एक सच्चा शिष्य भक्ति मार्ग पर कभी आशा नहीं खोता। वह तो अपने दिव्य गुरु द्वारा दिखाए गए दिव्य मार्ग पर अनवरत चलता रहता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक शिष्य को मार्ग पर चक्रव्यूह रूपी सांसारिक भ्रमों व संशयों से स्वयं को दूर रख कर, निरंतर उत्साह से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। भगवान राम की परम भक्त ‘माता शबरी’ ने कई वर्षों तक धैर्यपूर्वक भगवान के दर्शनों की प्रतीक्षा की। भगवान राम ने भी उनके अडिग विश्वास और विशुद्ध भक्ति के कारण उन्हें अपने दिव्य दर्शन प्रदान किए।

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स्वामी जी ने अनेकों उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि एक शिष्य को अध्यात्म के पथ पर कैसे चलना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक बार श्री अरविन्द से प्रश्नकर्ता ने पूछा – “महर्षि, मैं बहुत लंबे समय से इस मार्ग पर चल रहा हूं। पर ऐसा लगता है कि कहीं पहुंच नहीं पाया हूं। यही सोच कर मैं बहुत बार निराश हो जाता हूं।“

महर्षि ने कहा – सबसे पहले तो यह जान लो कि निराश होने से कुछ हाथ नहीं आएगा। इसलिए, निराशा के जंजाल से स्वयं को बचाओ। और दूसरी बात, हमारे मन के द्वारा हम यह आंकलन कभी नहीं कर सकते कि हम इस मार्ग पर कितना आगे बढ़े हैं। कारण कि आतंरिक प्रगति बाहरी प्रगति की तरह स्थूल रूप में दिखाई नहीं देती।

साथ ही, यह यात्रा एक दिन या कुछ हफ्तों अथवा सालों की नहीं है। यह सफर तो जन्मों जन्मों से चलता आया है। और केवल एक पूर्ण आध्यात्मिक गुरु ही इसके विषय में जानते हैं। इस मार्ग पर चलना ही अपने आप में सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसलिए, बिना कुछ सोचे, बस इस मार्ग पर चलते रहो और आगे बढ़ते रहो।

स्वामी जी ने अंत में समझाया कि हमें निरंतर प्रार्थना करनी चाहिए और अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कभी निराश नहीं होना चाहिए। भीतर की यात्रा करने और स्वयं से जुड़ने के लिए ‘ब्रह्मज्ञान’ एकमात्र सनातन विद्या है। यह साधक में अपार शक्ति का संचार करती है, जिससे वह एक दिन अपने गंतव्य को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्मज्ञान पर आधारित ध्यान साधना के माध्यम से प्राप्त दिव्य ओज ही हमें जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण बनाए रखने का सामर्थ्य प्रदान करता है।

कार्यक्रम के अंत में आंतरिक यात्रा और आत्म-खोज के पथ पर प्रतिबद्ध होकर चलने की प्रतिज्ञा ली गयी। तदोपरांत, विश्व भर में मौजूद श्री गुरु महाराज जी के हज़ारों शिष्यों ने एक घंटे के सामूहिक ध्यान सत्र में भी भाग लिया।

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