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15 अप्रैल 2018 को राजस्थान के अनुपगढ़ में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने एक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया| इस कार्यक्रम का उद्देश्य साधकों को ब्रह्मज्ञान के निरंतर अभ्यास और आध्यात्मिक मार्ग पर दृढ़ता से चलने के लिए प्रेरित करना रहा| साध्वी जी ने जीवन में गुरु के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि एक पूर्ण आध्यात्मिक सतगुरु की प्राप्ति के बिना कोई भी मानव जीवन का लक्ष्य- ‘मुक्ति’ प्राप्त नहीं कर सकता। आत्मा विभिन्न योनियों में यात्रा करते हुए परम आत्मा- परमात्मा से मिलन के लिए अग्रसर रहती है| ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होने के पश्चात ही व्यक्ति जन्म और मृत्यु के इस सत्य से पूर्णत: अवगत हो सकता  है। साध्वी जी ने कहा कि एक पूर्ण सतगुरु वह है, जिसने ईश्वर प्राप्ति हेतु मानव शरीर की सीमाओं को भी पार कर लिया है। पूर्ण तत्ववेता ब्रह्मनिष्ठ संत ईश्वर को अंत:करण में देखते हैं| वह शरण में आने वाले हर मानव को भगवान के दर्शन करवाने में भी समर्थवान होते हैं।

अपने प्रवचनों के दौरान साध्वी जी ने कई उदाहरण प्रस्तुत करते हुए स्वामी विवेकानंद जी के विशेष में बताया| जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्रदाता- पूर्ण सतगुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से मिलने से पहले कई तथाकथित गुरुओं के यहाँ दौरा किया| एक और उदाहरण में साध्वी जी ने उल्लेख करते हुए कहा कि गुरु वह माध्यम है जो ईश्वर को दिखाता है और यही कारण है कि जब वे मानव देह में आते हैं तो देवी-देवता भी ऐसे पूर्ण सतगुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते है। मानव हमेशा ईश्वर को बाहरी स्थानों पर खोजता है। जबकि, भगवान तो भीतर समाया है और आत्मा का द्वार खोलने की कुंजी पूर्ण सतगुरु के पास ही होती है|

साध्वी जी ने एक सच्चे गुरु के परीक्षण पर बात करते हुए बताया कि आज के समय में गुरु के भेष में  बहुत से लोग घूम रहे हैं। उनके वस्त्रों, वाक्प्रचार, भव्यता या अनुयायियों की भीड़ से प्रभावित होना सही नहीं है। बल्कि जब हम एक संत से मिले तो हमें उस ब्रह्मज्ञान की खोज करनी चाहिए जो हमें अपने रचियता तक पहुंचने के लिए प्रकाशमय पथ दिखा सके| ब्रह्मज्ञान- एक ऐसा सर्वोच्च ज्ञान है जिसे जानकर बाकी सब कुछ ज्ञात हो जाता है और इसके बाद कुछ और जानने की आवश्यकता नहीं रहती है। यह दिव्य ज्ञान किसी बाहरी माध्यम से हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए कोई पवित्र शास्त्र हमें भगवान को प्राप्त करने में मदद नहीं कर सकता है, हालांकि वे सिर्फ हमें गुरु तक पहुंचने का मानचित्र प्रदान करते हैं। किसी भी बाहरी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करके ध्यान लगाया ही नहीं जा सकता| आत्मा ही वह केंद्रबिंदु है जिस पर ध्यान एकाग्र किया जाता है। साथ ही, साध्वी जी ने ध्यान के मार्ग में नियमित अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डाला क्योंकि तभी एक जीवात्मा इस मार्ग में प्रगति करती है।

प्रचार सामग्री और संस्थान के बहुत से उत्पादों के स्टाल भी लगाए गए। स्वयंसेवकों ने इन काउंटरों के प्रबंधन में अपना समय और ऊर्जा दान की। इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले भक्तों ने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान व आवश्यकता के बारे में जाना|

Initiation into the Path of Divinity through Monthly Spiritual Congregation at Anoopgarh, Rajasthan

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