श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा तनाव प्रबंधन पर तीन व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। प्रथम व्याख्यान 30 नवंबर 2022 को हार्मनी कॉलेज और अस्पताल, जीरा रोड, फिरोजपुर कैंट, पंजाब में किया गया। अन्य दो व्याख्यान डीएवी गर्ल्स स्कूल, फिरोजपुर कैंट, पंजाब और दून जूनियर स्कूल, बॉर्डर रोड, फिरोजपुर, पंजाब में 2 दिसम्बर 2022 को किए गए। मुख्य प्रवक्ता, डॉ सर्वेश्वर जी ने रोजमर्रा के तनाव को न सिर्फ कम करने अपितु उसे पूरी तरह से खत्म करने की उपयुक्त विधि को उजागर किया।
डॉ. सर्वेश्वर जी ने समझाया कि यद्यपि प्रौद्योगिकी विकास ने हमें भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान की हैं और हम अपने परिवेश को बदलने में भी सक्षम हुए हैं; परंतु वहीं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में वृद्धि देखी गई है। बाहरी विकास आंतरिक साम्यावस्था में फलीभूत होता नहीं दिख रहा है। यह इसलिए क्योंकि आंतरिक शांति केवल आध्यात्मिक रूपांतरण द्वारा ही प्राप्य है। हम चाहे भौतिक वस्तुओं से स्वयं को शांत करने के अनेक प्रयास क्यों न कर लें, अंततः हमें शांति भीतर स्थित दिव्य अनंतता से जुड़कर ही मिलेगी।
चिरस्थायी आनंद प्राप्त करने की विधि क्या है? विज्ञान द्वारा यह प्रमाणित किया जा चुका है कि मानव के तंत्रिका तंत्र को शांत करने में ध्यान सहायक सिद्ध होता है। परंतु किस प्रकार का ध्यान हमें स्थायी परिणाम प्रदान कर सकता है? केवल जलती मोमबत्ती या साँसों पर एकाग्रचित्त होना या कुछ शब्दों का उच्चारण करना ध्यान की वास्तविक प्रणालियाँ नहीं हैं। इसके विपरीत, जैसा कि हमारे शास्त्र ग्रंथों में वर्णित है, पूर्ण सतगुरु द्वारा प्रदान किए जाने वाला सनातन ब्रह्मज्ञान ही ध्यान की उपयुक्त विधि है। कारण कि ब्रह्मज्ञान अंतरघट में स्थित ईश्वर का साक्षात्कार है। जब हम उस सच्चिदानंद स्वरुप ईश्वर का अपने भीतर दर्शन करते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब हमारे मन की सारी उथल पुथल शांत होती चली जाती है। और हम एक बेहद सुखद अहसास अपने अंदर करते हैं।
इसलिए यह अत्यावश्यक है कि हम एक ऐसे ब्रह्मज्ञानी पूर्ण सतगुरु की खोज करें, जो हमें यह ज्ञान प्रदान कर सकें। क्योंकि केवल ब्रह्मज्ञान द्वारा ही, बिना किसी बाह्य वस्तु के, ईश्वर को जाना जा सकता है। ज्यों-ज्यों बाह्य पदार्थों पर हमारी निर्भरता कम होती जाती है व ईश्वर के साथ हमारा संबंध गहरा होता जाता है, त्यों-त्यों हमारे तन-मन-आत्मा के संतुलन का भी विकास होता चला जाता है।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. सर्वेश्वर जी ने उपस्थित श्रोताओं से अविलंब ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का आग्रह किया, जिसके लिए डीजेजेएस सभी का स्वागत करता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय के पूर्ण सतगुरु, श्री आशुतोष महाराज जी की अनुकंपा से असंख्य लोगों ने अपने भीतर ईश्वर का दर्शन किया है तथा एक शांतमय व आनंदमय जीवन जीने की कला को जाना है। डीजेजेएस द्वारा समाज को तनाव-मुक्त बनाने के प्रयासों को श्रोताओं ने सराहा।