एक शिक्षक के लिए पाती- "आप तो विद्यार्थियों की परीक्षा साल में एक या दो बार लेते हैं, किंतु विद्यार्थी तो आपकी परीक्षा प्रतिदिन, प्रतिघंटे, प्रतिक्षण ही लेते रहते हैं। वे जैसा आपको देखते हैं, वैसा ही स्वयं भी सीखते हैं और करते हैं। इसलिए जैसे आप होंगे, वैसे ही आपके विद्यार्थी, इस देश के नौनिहाल भी बन जायेंगे।"
शिक्षक होना केवल कुछ वेतन के लिए परिश्रम करना भर नहीं है। जिस प्रकार एक दीपक को प्रकाशित करने के लिए दूसरे दीपक को स्वयं भी प्रज्ज्वलित होना पड़ता है, ठीक ऐसे ही एक अध्यापक को भी अपना बाहरी और आंतरिक जीवन ऐसे ढाँचे में ढालना होता है, जिसका अनुगमन करते हुए छात्र अनायास ही शालीनता, सज्जनता,श्रमशीलता, अनुशासनता, ईमानदारी, ज़िम्मेदारी जैसे सद्गुणों को धारण कर सके। जब कोरोना महामारी की विपरीत परिस्थितियाँ भी शिक्षकों को उनके दायित्वों को निभाने से नहीं रोक सकीं और उन्हीं के दृढ़संकल्प और उत्साह ने इस कठिन समय में भी बच्चों और अभिभावकों के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाया हुआ है। तब ऐसे समय में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के सामाजिक प्रकल्प, मंथन-संपूर्ण विकास केंद्र ने भी हर प्रकार की बाधा को दूर करते हुए मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र के प्रत्येक शिक्षक के प्रति आदर एवं श्रद्धा अर्पित करने हेतु "शिक्षक दिवस" के उपलक्ष्य में 5 सितंबर 2020 को एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया जिसका शीर्षक था -"Saluting our Educational Superheroes"।
कार्यक्रम का शुभारंभ DJJS की प्रचारक शिष्या और मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र नामक प्रकल्प की संचालिका साध्वी दीपा भारती द्वारा प्रेरणादायक विचारों से किया गया जिसमें उन्होंने मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र की अभी तक की सफल यात्रा का वर्णन करते हुए सभी शिक्षकों को उनके अतुलनीय योगदान के लिए उनका हार्दिक अभिवादन किया। इसके बाद शिक्षकों के कुछ अनमोल क्षणों को यादों के पन्नों से उड़ेल कर एक वीडियो क्लिप के रूप में दिखाया गया जिसे देख कर सभी शिक्षक भावुक हो गए और उनकी आँखे नम हो गयीं। सत्र को अग्रिम चरण में पहुँचाते हुए एक प्रेरणा दायक एवं उत्साहवर्धक सत्र का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (DJJS) की प्रचारक साध्वी शिष्या शिवानी भारती ने की जिसमें उन्होंने देश के कुछ महान शिक्षकों का उदाहरण देते हुए एक शिक्षक के कुछ महत्त्वपूर्ण गुणों का उल्लेख किया और कहा कि एक शिक्षक अपने शिष्यों के लिए मज़दूर बनकर ज्ञान का कुआँ खोदते हैं ताकि शिष्य उसका मीठा जल पीकर स्वयं को तृप्त कर पाये। साथ ही उन्होंने कहा कि एक शिक्षक की पहचान उसके शिष्यों की उपलब्धियाँ होती है। इसलिए एक शिक्षक की भूमिका विद्यालय से लेकर विद्यालय तक समाप्त नहीं होतीI शिक्षक की पहचान जड़ता नहीं है अपितु शिक्षक होना तो सतत बहने वाली धारा की तरह है। उसे खुद को भी निरंतर सीखने की प्रक्रिया में शामिल करना होता है। इसके अलावा उन्होंने प्राचीन भारत की गुरु-शिष्य परंपरा को भी उजागर करते हुए बताया कि गुरु शिष्य को निष्क्रिय नहीं बनाते अपितु उसे ज्ञान की मशाल थमा उसका विवेक जाग्रत कर निष्काम एवं निस्वार्थ भावना से समाज की सेवा हेतु तैयार करते हैं।
अंत में सभी शिक्षकों ने अपने यादगार क्षणों में एक ओर अध्याय जोड़ने के लिए मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र का धन्यवाद किया।