‘देवी’ शब्द मूल शब्द ‘दिव’ / ‘दिव्य’ से आया है जिसका अर्थ है रोशनी करना। अपनी सभी जीवात्माओं के जीवन में प्रकाश के स्रोत के रूप में देवी मां स्वयं को स्थापित करती है जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर अग्रसर करती है। 13 अक्टूबर, 2018 को पंजाब के संगरूर में माता की चौकी का आयोजन किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी मंगलावती भारती जी ने मुख्य वक्ता के रूप में अन्य शिष्यों के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत किया। साध्वी जी ने सबसे पहले, एक बच्चे के जीवन में सांसारिक मां के महत्व की बात की और एक व्यक्ति के उत्थान और विकास में माँ की सबसे महत्वपूर्ण स्थिति कैसे है- इस पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि दिव्य मां वह है जो सभी मनुष्यों पर स्नेह को एक साथ अर्पित करती है। देवी मां का प्यार एक व्यक्ति को कमजोर नहीं बनाता है बल्कि यह जीवन में आने वाले संघर्षों में डटने की हिम्मत, मनोवैज्ञानिक विकारों से मुक्ति और आज समाज में प्रचलित हैं मानसिक अशांति को दूर करता है।
साध्वी जी ने आगे कहा कि जब एक भक्त सच्ची निष्ठा से सतगुरु से संपर्क साधता है, तो गुरु उसे दिव्य ज्ञान का आशीर्वाद प्रदान करते हैं- जो कि स्वयं को प्राप्त करने का सर्वोतम शिखर है। तब शिष्य समझता है कि निःस्वार्थ प्रेम और असीम आनंद क्या है। इसलिए गुरु सांसारिक माताओं से उच्च है क्योंकि गुरु प्रकाश के साथ एक साधक को परिचित करवा उसके जीवन में परिवर्तन लाता है।
माता की चौकी में, दिव्य मां की महिमा गाई जाती है और यह इस बात को दर्शाता है कि हमारी संस्कृति में स्त्रियों की क्या भूमिका रही है। यह इस तथ्य का प्रतीक है कि जैसे देवी मां सभी बुराइयों और राक्षसों को शांति और सुरक्षा स्थापित करने के लिए नष्ट कर देती है, वैसे ही पृथ्वी की सभी स्त्रियों को सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए ताकि मानव जाति सकारात्मक और विकासात्मक मार्ग में प्रगति कर सके। प्रकृति में धार्मिकता तभी विकसित होती है जब व्यक्ति ब्रह्मज्ञान की तकनीक का अभ्यास करता है। ब्रह्मज्ञान मानवीय मन के प्राकृतिक तत्वों और शक्ति को संतुलित करता है।
देवी ,माँ की बहुत सी भेंटों का भी सुंदर प्रस्तुतिकरण किया गया और सभी भक्त भक्ति संगीत में खुशी से झूम भी उठे थे। माता की चौकी का सांस्कृतिक महत्व भी है क्योंकि यह समुदायों के बीच दोस्ती और खुशी को जन्म देती है।
साध्वी जी और श्री आशुतोष महाराज जी के सभी उपस्थित शिष्यों ने भक्तिपूर्ण संगीत द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सर्वशक्तिमान माँ के जयकारे हर ओर गूंज उठे। पूरा वातावरण आध्यात्मिक आनंद से सराबोर था और अलग-अलग काउंटरों में संस्थान स्वयंसेवक उत्साह और जुनून से भरे हुए थे। वे निःस्वार्थ सेवा की अनुभूति से अभिभूत हो गुरुदेव की महिमा गुणगान कर रहे थे।
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