दिनांक 17 फरवरी, 2019 को मासिक सत्संग समागम में अमरावती, महाराष्ट्र एवं आसपास के क्षेत्रों के भक्त श्रद्धालुगण सम्मिलित हुए। कार्यक्रम के अंतर्गत, गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों द्वारा ध्यान साधना के माध्यम से व्यक्तिगत विकास के विषय पर समझाया गया। साध्वी जी ने कहा कि कीमती वस्त्र एक व्यक्ति के बाहरी स्वरुप को निखार सकते है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का एक बहुत सुन्दर उदाहरण दिया - एक बार विवेकानंद जी अमरीका में भाषण देने जा रहे थे, जहाँ उस कार्यक्रम के आयोजक ने उनके साधारण कपड़ों पर एक टिप्पणी की थी तब उस समय स्वामी जी ने उसे उत्तर दिया कि हो सकता हे की अमरीका में दर्जी लोगों के व्यक्तित्व का निर्माण करते होंगे अर्थात वस्त्र किसी के व्यक्तित्व को दर्शाते हों किन्तु भारत में व्यक्ति का चरित्र उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
साध्वी जी ने कहा कि सभी मतभेद और संघर्ष केवल बाह्य सतह पर होते हैं अंतस में केवल उस परमसत्ता का निवास स्थल है। ब्रह्मज्ञान के माध्यम से अंतस में स्थित उस परमात्मा तक पंहुचा जा सकता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति जिसका मन केंद्रित होता है वो अपनी बुद्धि एवं मानसिक क्षमताओं के आधार पर अपनी समस्या को सुलझाने का सामर्थ्य रखता है। एक आत्मजागृत व्यक्ति में यह सामर्थ्य होता है कि वह अपने विवेकपूर्ण चिंतन से मन की सीमितताओं को पार कर जीवन की किसी भी समस्या को सुलझाने में सफ़ल हो पाता है। साध्वी जी ने बताया कि आत्मोन्मुख व्यक्ति जीवन में सदैव सकारात्मक रुख रखते हुए सीखने एवं अपनी गलतियों को सुधारने के लिए प्रयासरत रहता है। ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर उसके अंदर विवेक जाग्रत होता है जिससे वो नकारात्मकता में भी सकारात्मकता को खोज लेता है। इसका एक बहुत सुन्दर उदाहरण है रुकी हुई घड़ी जो रुकने के बाद भी दिन में 2 बार सही समय दिखाती है अर्थात विपरीत परिस्थितयों में भी सदैव कुछ न कुछ अनुकूल जरूर होता है जिसे हम समझ नहीं पाते।
आत्मा के विषय में बात करते हुए, साध्वी जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा को किसी शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, ना ही अग्नि उसे जला सकती है। पानी उसे गीला नहीं कर सकता और ना ही हवा उसे अवशोषित कर सकती है। आत्मा अजर और अमर है। इसलिए इस जीवन में उस आत्मा के वास्तविक रूप को समझाना ही विवेक है। ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर उस परमसत्ता के ध्यान एवं साधना के माध्यम से मनुष्य जीवन के वास्तविक मूल्य को समझ सही दिशा की ओर अग्रसर हो सकता है।
जिस प्रकार भगवान कृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मज्ञान की दीक्षा प्रदान की थी ठीक उसी प्रकार वर्तमान में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी विश्व भर में अनेकों भक्त जिज्ञासुओं को इस ब्रह्मज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं। ब्रह्मज्ञान से लाभान्वित शिष्यगण भी इस ब्रह्मज्ञान के प्रचार प्रसार में योगदान दे रहे हैं । जहां एक ओर यह सुन्दर कार्यक्रम चल रहा था वहीँ सत्संग प्रांगण के बाहर कईं सेवादार, आने जाने वाले लोगों को सत्संग श्रवण करने के लिए आमंत्रित करते नज़र आए।