दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के अंर्तगत 10 जून, 2018 को चाकन, महाराष्ट्र में “भीतरी शांति व सफलता” विषय पर आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्वामी जी ने बताया कि दुनिया में सफलता का अर्थ बहारिय साधनों को अर्जित करना और जीतना है जबकि आंतरिक क्षेत्र में सफलता का अर्थ मानवीय गुणों को प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि करना है। अधिकतर लोगों के अनुसार धन व उपलब्धियां ही सफलता की द्योतक है। हालांकि असली समृद्ध व सफल व्यक्ति अपने भीतर दिव्य शांति का खज़ाना खोजकर अन्य प्राणियों को भी प्रदान करता है।
स्वामी जी ने इस तथ्य को महात्मा बुद्ध के जीवन की घटना के साथ समझाया।एक बड़े साम्राज्य के बाहर महात्मा बुद्ध अधिकांश समय गहन ध्यान में लीन रहें। उनकी उच्च स्तरीय चेतना का प्रभाव व्यापक रूप से फैलने लगा और भगवान बुद्ध के आश्रम के करीब वन के हिंसक पशु पूर्ण शांति से बैठने लगे। हिरण और खरगोशों जैसे अन्य जानवर भी अपने स्थानों से बाहर निकल बिना किसी भय के आश्रम के समीप रहते। एक महान आत्मा की आंतरिक शक्ति के प्रभाव का यह विलक्षण उद्धरण है।
ध्यान न केवल किसी व्यक्ति को द्वेष और ईर्ष्या आदि दुर्गुणों को छोड़ने में सहायता करता है बल्कि उनकी कमियों को दूर कर श्रेष्ठ गुणों की वृद्धि में सहयोगी भी बनाता है। ब्रह्मज्ञान आधारित ध्यान से व्यक्ति दुनिया और आध्यात्मिक सफलता के बीच संतुलन बनाने का विवेक प्राप्त कर लेता है।साध्वी जी ने महान भक्त हनुमान का उदाहरण उद्धृत किया। अपने गुरु भगवान श्री राम के प्रति उनकी असीम भक्ति द्वारा उन्होंने अपने सभी प्रयासों में सफलता प्राप्त की। वैदिक काल से मानव ने इसी ध्यान की शक्ति से असंभव को संभव बनाया है।
इस कार्यक्रम में साधकों ने अनेक भक्ति गीतों का गायन किया। आस-पास के क्षेत्रों से उपस्थित लोगों ने आध्यात्मिकता की इस दिव्य आभा से उत्साह के प्रबल वेग को अपने भीतर सहेजा। वहां मौजूद सभी लोगों ने विश्व के कल्याण हेतु निःस्वार्थ सेवा को प्रदर्शित कर समर्पण की पूर्णता की और दृढ़ कदम बढ़ाया। इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी स्वयंसेवकों ने पूर्ण सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के महान लक्ष्य विश्व शांति हेतु सेवाएँ प्रदान कर अपनी कटिबद्धता व्यक्त की।
ऑडीटोरियम के बाहर संस्थान द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों और परियोजनाओं के अंतर्गत निर्मित उत्पादों का स्टाल भी लगाया गया। इन स्टालों का दौरा करने वाले लोग स्वयंसेवकों के प्रयासों से प्रभावित हुए। इन परियोजनाओं का उद्देश्य समाज को आत्मनिर्भर बनाते हुए आत्मविश्वास और निडरता के साथ जीवन जीने की राह पर बढ़ाना है। ब्रह्मज्ञान से दीक्षित स्वयंसेवक अपने भीतर दिव्य प्रकाश का ध्यान कर न केवल सेवा के क्षेत्र में बल्कि समाज उत्थान की दिशा में अधिक सहयोग कर पाते है।