गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में संस्थान द्वारा कपूरथला, पंजाब में 23 फरवरी 2020 को मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया| क्षेत्र के आस पास के नगरों से श्रधालुओं ने कार्यक्रम में आकर भक्तिपूर्ण प्रेरणाओं का लाभ प्राप्त किया| कार्यक्रम का शुभारंभ सुमधुर भजनों द्वारा किया गया| महापुरषों की वाणी है- तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ अर्थात वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर (तालाब) भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के शुभ कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं। महापुरुष इस धरती पर जब जब अवतरित हुए हैं, उनका हमेशा एक ही लक्ष्य रहा प्राणियों में प्रेम एवं सदभावना प्रदान कर उन्हें ईश्वर की शाश्वत भक्ति से अवगत कराना| एक बार गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी से एक श्रद्धालु ने प्रश्न किया- क्या भगवान राम इस धरा पर केवल कुछ राक्षसों का वध करने हेतु अवतरित हुए थे| क्या सर्वानियंता ईश्वर को इस छोटे से कार्य के लिए स्वयं आना आवश्यक था? महाराज जी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया- वैसे तो महापुरुषों के धरती पर अवतरित होने के दो मुख्य कारण होते हैं- परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् - अर्थात दुर्जनों का विनाश एवं साधुओं की रक्षा| परंतु जब पूर्ण परमात्मा अपने समस्त गुणों सहित धरा पर आते हैं, तब उसके पीछे एक और कारण भी होता है- अपने अनन्य भक्तों को अपने दर्शनों का लाभ प्रदान करना|
कहा जाता है- शबरी वनवासिनी होती न जो, प्रभु श्री राम न होते वनवासी| अर्थात भगवान श्री राम वन में रावण के वध के साथ साथ अपने भक्तों जैसे माता शबरी, केवट आदि को अपने साकार रूप में दर्शन देने भी गए थे! माता शबरी अनेक वर्षों तक भगवान की प्रतीक्षा करती रहीं | उनके मन में किसी भी अन्य वस्तु की इच्छा नही थी| श्री राम का अतिथि सत्कार करने के पश्चात उन्होने अपना देह त्याग दिया और परम धाम को चली गयीं | भगवान राम के प्रेमियों और भक्तों की श्रेणी में माँ शबरी का नाम अग्रगण्य है|
यूँ तो प्रेम के अनेक प्रकार हैं, परंतु दिव्य एवं अलौकिक प्रेम केवल ध्यान के माध्यम से संभव है| ध्यान का बीजारोपण ब्रह्मज्ञान के माध्यम से पूर्ण गुरु द्वारा ही किया जा सकता है| ब्रह्मज्ञान शिष्य को न केवल सत्य के मार्ग पर अग्रसर कराता है बल्कि उसके हृदय में प्रेम एवं सौहार्द भी प्रदान करता है| श्री गुरु महाराज जी का कहना है कि जब मनुष्य के मन में प्रेम भरा हो तब उसके लिए दुर्गम पथ भी सुगम हो जाता है| प्रेम की शक्ति से हम बलवान शत्रु को पराजित कर सकते हैं| अतः आज के समय में ब्रह्मज्ञान ही विश्व में शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय है|