"निस्वार्थ भाव से की गई सेवा के माध्यम से ही शाश्वत शान्ति की प्राप्ति होती है" - गुरु ग्रन्थ साहिब!! हमारे शास्त्रो में वर्णित है कि निस्वार्थ भाव से की गई सेवा के द्वारा मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है तथा अपने क्रोध, अहंकार, वासनाओं आदि विकारों पर नियंत्रण करने में सक्षम हो पाता है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 31 मार्च 2019 को कुरुक्षेत्र, हरियाणा में सेवा के महत्व को समझाने हेतु मासिक आध्यात्मिक समागम कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ पवित्र वैदिक मंत्रोउच्चारण एवं गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के चरण कमलो में प्रार्थना से किया गया। सद्गुरु की दिव्यता एवं महत्व का व्याख्यान संगीतज्ञों द्वारा मधुर भजनों से किया गया। भावपूर्ण भजनों ने श्रोताओ को मंत्रमुग्ध कर दिया। संस्थान के प्रचारकों ने श्रोताओ को सम्बोधित करते हुए मानव जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सेवा के महत्व को बताया। यह मासिक समागम शिष्यों को अपने सतगुरु की दिव्यता का ध्यान करने की याद दिलाते है तथा बताते है कि किस प्रकार गुरु की कृपा हमें सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर करती है।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी जी ने बताया कि ब्रह्मज्ञान व्यक्ति को सेवा के महत्व का अहसास कराता है। सेवा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने कर्मो के फल से मुक्त हो जाता है। यह एहसास तभी जाग्रत होता है जब मनुष्य को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। केवल मानव योनि में ही व्यक्ति ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर दिव्य प्रकश पर ध्यान लगा जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
साध्वी जी ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि चौरासी लाख योनियों में मात्र मानव योनि ही ऐसी योनि है जिसमे ब्रह्मज्ञान द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। सभी जीवित प्राणी अपने कर्मो के फलस्वरुप ही विभिन्न योनियों को प्राप्त करते है। मनुष्य की योनि तभी प्राप्त होती है जब वह अच्छे कर्म करता है और ईश्वर उस पर कृपा करते है। केवल मनुष्य योनि में ही मानव आध्यात्म पथ पर चल सकता है।
मासिक आध्यात्मिक समागम कार्यक्रम के माध्यम से शिष्यों ने ईश्वर के प्रति सेवा, समर्पण तथा भक्ति की भावना से प्रेरित किया जाता है। यह उपदेश प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक सुधार लाने की बात समझाते है।
निष्ठा पूर्वक सद्गुरु के आदेशों का पालन करने से हम अपने भीतर निहित विशाल ब्रह्माण्ड एवं ईश्वरीय सत्ता की गहरायी को सहजता से समझ सकते है। अतः हमें यह समझ आती है कि यह बून्द महासागर का अंग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण महासागर है। कार्यक्रम का समापन भंडारे द्वारा किया गया।