जयपुर (राजस्थान) में 12 जनवरी 2020 को एक विशाल आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विशेषकर शिष्यों को आध्यात्मिक पथ पर दृढ़ता से बढ़ने हेतु प्रेरित करने के लिए किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मंत्रोच्चारण से हुआ। तत्पश्चात मधुर भक्ति गीतों की श्रृंखला ने शिष्यों के भीतर दिव्यता का संचार किया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों द्वारा आध्यात्मिक व्याख्यान ने श्रोताओं में आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्ति हेतु उत्साह भावना को जागृत किया। कार्यक्रम का अंत ध्यान सत्र और प्रसादम द्वारा हुआ।
साध्वी जी ने आध्यात्मिक विचारों को प्रदान करते हुए समझाया कि गुरु ही संसार में दिव्य प्रेम प्रदाता व दिव्य माता की भूमिका को पूर्ण करते हैं। साधक को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर, गुरु आध्यात्मिक क्षेत्र में उसे जन्म देते हैं। सतगुरु ही इस संसार के भ्रम को काट, साधक को सच्ची आंतरिक दिव्य ज्योति प्रदान करते हैं। इसलिए अनेक प्राचीन पवित्र ग्रंथों में सतगुरु को माता कहा गया है व अनेक संतों ने सतगुरु को माँ से श्रेष्ठ स्थान दिया है। गुरु ही शिष्य के जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र को समाप्त कर सकते हैं। गुरु साधक का रक्षण व मार्गदर्शन तब तक करते हैं, जब तक कि वह आध्यात्मिक मंजिल तक नहीं पहुंच जाता। सच्चा गुरु न केवल साधक को ईश्वरीय ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) प्रदान करता है, बल्कि शिष्य का कभी भी त्याग नहीं करते हैं।
साध्वी जी ने बताया कि पूर्ण सतगुरु द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके, एक साधक को दृढ़ता से ध्यान का अभ्यास करना चाहिए| ध्यान के अभाव में शिष्य कभी भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता| भक्ति मार्ग में आने वाली अनेक बाधाओं को भक्त तभी पार कर सकता है जब उसके पास ध्यान का संबल हो। भगवान् श्री कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को इस ज्ञान के अभ्यास हेतु प्रेरित किया। ध्यान द्वारा साधक जहाँ एक ओर अध्यात्म के क्षेत्र में दृढ़ होता है वहीँ दूसरी ओर उसके भीतर दिव्य प्रेम का संचार होता है। शिष्य को अपने बहुमूल्य समय का अपव्यय नही करना चाहिए। विचारों के अंत में साध्वी जी ने शिष्यों से आग्रह किया कि वे हर पल गुरु चरणों में प्रार्थना करें ताकि गुरु-शिष्य का दिव्य आध्यात्मिक संबंध कभी न टूटे; बल्कि दिव्यता से ओतप्रोत हो सदैव बढ़ता रहे।