दिनांक 04.09.2018 को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के जिला पुणे, महाराष्ट्र में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत दीपावली के त्यौहार के सही अर्थ को भक्त श्रद्धुलाओं के समक्ष रखा गया I सत्संग विचारों के माध्यम से प्रचारक शिष्य एवं शिष्याओं ने बताया सही अर्थों में दिवाली का त्यौहार तभी सार्थक होगा जब हम उसे मनाने के वास्तविक कारण को समझ पाएंगे Iप्रत्येक त्यौहार को मनाने के पीछे सदैव २ पहलु होते है। पहला लौकिक एवं दूसरा आलौकिक , किसी भी त्यौहार के वास्तविक अर्थ को जानने के लिए उसके आध्यात्मिक पहलु को जानना अत्यंत आवश्यक हैI
दिवाली प्रतीक है आत्म जाग्रति का. प्रभु श्री राम का अयोध्या आगमन संकेत है एक पूर्ण सतगुरु के एक शिष्य के जीवन में आगमन का I जिस प्रकार दिवाली में हम अपने घरों को प्रकाशमान करते है, आतिशबाज़ी करते है मिठाईयाँ खाते है ठीक उसी प्रकार एक पूर्ण गुरु के हमारे जीवन में आने पे हम उस परमात्मा के वास्तविक प्रकाश स्वरुप , उस दिव्य नाद " अनहद नाद" को अपने भीतर देख और सुन पाते हैं, परमात्मा के उस अमृत को अपने भीतर ही चख पाते हैं I अर्थात ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद दिवाली के सही स्वरुप को समझा जा सकता है और फिर व्यक्ति को दिवाली के लिए साल के उस एक दिन का इंतज़ार नहीं करना पड़ता अपितु ब्रह्मज्ञान के माध्यम से वो अपने अंतर में प्रत्येक क्षण दिवाली मनाता हैI
प्रभु श्री राम का अयोध्या पुनरागमन से वहां राम राज्य की स्थपना हुई थी! अयोध्या ,एक ऐसी नगरी जहां वैमनस्य भाव से दूर केवल और केवल प्रेम और शांति का ही वास था I ठीक उसी प्रकार जब हम ध्यान की गहराइयों में उतरते हैं तो हम उस परम शांति की ओर अग्रसर हो पाते है और सोच और क्रियाओं में उचित समंव्यय बैठा पाते है। ध्यान साधना के निरंतर अभ्यास से हमारे मस्तिष्क का निष्क्रिय भाग भी क्रियाशील हो जाता है। किन्तु क्या कारण है कि ध्यान अभ्यास के बाद भी हम अपनी छोटी सोच और संकुचित दायरों में घिरे रहते है ? इसका जवाब देते हुए प्रचारक शिष्यों ने बताया कि इसका मूल कारण है हमारे प्रयासों में कमी , गुरु के प्रति हमारी निष्ठा में कमी। जब तक हम अपने गुरु से तारतम्य स्थापित नहीं करते और बाह्य जगत में सुख की अपेक्षा रखते है तब तक हम भक्ति के उस सुमधुर रस को नहीं चख सकतेI नियमित ध्यान साधना के माध्यम से पहले हमें अपने अंतर में राम राज्य की स्थापना करनी है और तभी बाह्य जगत में राम राज्य साकार हो पाएगा। उपस्थित संगत ने इस बात को समझा और दिवाली की इस पावन पर्व में इस मार्ग में चलने का प्रण किया। प्रचारक शिष्य एवं शिष्याओं ने श्रद्धालुओं को दिवाली के आलौकिक महत्व को जानने की ओर अग्रसित किया। कार्यक्रम के अंत में सभी ने लंगर का आनंद लिया जिसमें श्रद्धालुओं ने अपनी निस्वार्थ सेवा अर्पित की।