आज के युग में, प्रौद्योगिकी वरदान और अभिशाप दोनों है। एक ओर यह जीवन को सरल बना रहा है परन्तु दूसरी ओर मानवीयता को दूषित कर रहा है। यह चिंताजनक है कि आज सम्पूर्ण समाज को व्यापार ने नियंत्रित कर लिया है, और ऐसी वृत्ति को बढ़ावा मिला है जिसमे समाज नैतिक मूल्यों को छोड़ता जा रहा है।
दिन-प्रतिदिन बढ़ती इच्छाओं की दौड़ में मानव अंतरात्मा को भूल चुका है। मानव जाति आज अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को पूरा करने के लिए अनैतिक मार्गों का चयन करने में संकोच नहीं करती है। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अपराध की राह पर बढ़ चला है। आज पुनः समाज को पतन के गर्त से उठाने के लिए सर्वोच्च शक्ति से जुड़ने की अनिवार्यता है। परम पूजनीय सतगुरु आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान समाज की उन्नति और उत्थान हेतु निरंतर प्रयासरत है।
उत्कृष्ट मानवीय सभ्यता को समाज में स्थापित करने के लिए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 18 अगस्त, 2019 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारम्भ गुरुदेव के पवित्र चरणों में श्रद्धा- सुमन अर्पित करते हुए किया गया। मधुर भजनों के सरस प्रवाह ने शिष्यों में गुरु प्रेम को बढ़ाया। स्वामी जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि समाज में व्याप्त अनैतिकता को मात्र दिव्य गुरु और उनकी शिक्षाओं द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य धन्य हैं क्योंकि गुरुदेव ने उन्हें "ब्रह्मज्ञान" प्रदान कर अपना दिव्य आशीर्वाद दिया है।
गुरु की विशेष कृपा के बिना मात्र अपने प्रयासों से “ब्रह्मज्ञान” प्राप्त करना अकल्पनीय है। ब्रह्मज्ञान एक शाश्वत तकनीक है जो हमें दिव्य ऊर्जा व चेतना से जोड़कर वास्तविक उद्देश्य की ओर अग्रसर करती है। पूर्ण सतगुरु के मार्गदर्शन में ही एक शिष्य आध्यात्मिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ सकता है। विचारों के माध्यम से बताया गया कि ब्रह्मज्ञान वह आध्यात्मिक क्रांति है जो समूचे विश्व को सकरात्मक रूप से परिवर्तित करने मे सक्षम है। आत्म-साक्षात्कार ही भीतर स्थित दुर्गुणों व कमियों को समाप्त करता है।
आध्यात्मिक क्रांति का एक मूलभूत पहलू जागरूकता है, जब मानव आत्मिक स्तर पर जागरूक हो जाता है तब वह स्वयं व समाज के कल्याण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा जागृत मानव दूसरों की भावनाओं और दृष्टिकोणों के बारे में अधिक विचारशील व संवेदनशील हो जाता है और शांति व सद्भाव लाने हेतु निरंतर प्रयासरत रहता है। अंत में विचारों में बताया गया कि सभी शिष्यों को गुरुदेव के आदर्शों व आज्ञाओं का निरंतर अनुसरण और अभ्यास करने की आवश्यकता है।