गुरु की मंत्रमुग्ध कर देने वाली मुस्कान शिष्यों के कष्टों को हर लेती है l गुरु की भौतिक उपस्तिथि को देखना हमेशा उनके प्रत्येक शिष्य के लिए एक दुर्लभ वरदान रहा है l यही कारण हैं कि गुरु के चरणों का ध्यान गुरु और शिष्य के संबन्ध को दृढ करता है l गुरु की पवित्र शिक्षाए विपरीत परिस्तिथियों मे भी दृढ़ता से खड़े रहकर उनका मुकाबला करने की प्रेरणा देती है l यह गुरु के प्रति सच्चे प्रेम को उत्पन्न करता है l मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम गुरु की विशेष कृपा है जो हमेशा अपने शिष्यों के पूर्ण आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर कार्यरत रहते है l 26 मई 2019 को मेरठ, उत्तर प्रदेश में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम ने फिर से शिष्यों को उनके गुरुदेव के प्रति स्नेह को याद दिलाया l इस आयोजन द्वारा प्रत्येक शिष्य को श्री गुरुदेव के आदर्शो पर अग्रसर होने कि लिए प्रेरित किया गया l
साध्वी जी ने कहा की अगर शिष्य पूरी ईमानदारी व् निष्ठा से गुरु के दिए हुए सभी निर्देशों का पालन करता है तो वह उसके लिए रक्षा कवच बन जाते है l उदहारण के तौर पर, श्री गुरुदेव के दिव्य दर्शन, ध्यान -साधना, सामाजिक एवं आध्यात्मिक कार्यो के लिए नियमित रूप से समय देना तथा शिक्षाप्रद व्याख्यान शिक्षार्थी के भीतर अनुशासन को विकसित करता है l मन शरीर का एक ऐसा अंग है जो सदैव बाहरी विकर्षणों के लिए अति संवेदनशील रहता है l विचारहीन होना एक कठिन कार्य है पर पूरी तरह असंभव नहीं l गुरु मन को नियंत्रित करने के लिए शिष्यों को ब्रह्मज्ञान प्रदान करते है l साधक के सम्पूर्ण विकास कि लिए गुरु कुछ नियम बनाते है l
गुरु की आज्ञाओ के पालन करने से शिष्य के विवेक का पता चलता है, जिसकी हमेशा जरूरत होती है l एक सच्चे गुरु का होना एक ऐसा लाभ है जो बहुत से लोग चाहते है परन्तु वास्तव में बहुत कम ही प्राप्त करते है l यह भगवान् श्री कृष्ण की शिक्षाओं के लिए अर्जुन का समर्पण था जिसके परिणामस्वरूप महाभारत के युद्ध में कौरवो पर पांडवो की जीत हुई थी l युद्ध के बाद भी, भगवान् कृष्ण के निर्देश पांडवो को सांसारिक कष्टों से सुरक्षा दिलाने में कभी विफल नहीं हुए l इसी प्रकार परम पूजनीय श्री आशुतोष महाराज जी ने अपने शिष्यों को ब्रह्मज्ञान (दिव्य ज्ञान) की प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक तकनीक के माध्यम से सार्वभौमिक चेतना के साथ मुक्त- प्रवाह संबन्ध बनाये रखने का दिव्य विज्ञान दिया है l श्री गुरुदेव की सभी आज्ञाएँ इस ज्ञान की शुद्धता को उनके शिष्यों के अंदर में जीवित रखने के लिए है l इस प्रकार अंत में साध्वी जी ने सभी शिष्यों को गुरुदेव कि प्रति प्रेम और उनकी प्रत्येक आज्ञा को मानने तथा एक सच्चे मार्ग का अनुसरण करने हेतु प्रोत्साहित किया l कार्यक्रम का समापन प्रसाद वितरण से हुआ l