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पटियाला, पंजाब में मासिक आध्यात्मिक कार्यकम के दौरान पूरे क्षेत्र के भक्त मानव जीवन के जन्म और मृत्यु सम्बन्धी रहस्यों को जानने के लिए एकत्र हुए। 14 अक्टूबर, 2018 को अनेक भक्त शिष्य सत्संग हेतु मुख्य हॉल में उपस्थित हुए। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के अनेक स्वयंसेवकों ने कार्यक्रम की व्यवस्था को सुचारू रूप से पूर्ण किया। संस्थान में सेवारत सभी स्वयंसेवक, सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा प्रदत ब्रह्मज्ञान से दीक्षित हैं व पुरे उत्साह और  निःस्वार्थ भाव से सेवाओं को पूर्ण कर रहे हैं।

Pearls of Wisdom Soothed the Distressed Hearts at Monthly Spiritual Congregation, Patiala, Punjab

साध्वी जी ने मानवीय जीवन चक्र के विषय पर विचार व्यक्त करते हुए बताया कि हमारा जीवन हमारे ही कर्मों या कार्यों पर आधारित है। उन्होंने न्यूटन द्वारा दी गई गति के तीसरे नियम का आधार लेते हुए तर्कसंगत और वैज्ञानिक रूप से समझाया कि प्रत्येक क्रिया की   समान व विपरीत प्रतिक्रिया होती है। जो भी कर्म हमारे अतीत, वर्तमान या भविष्य से जुड़े है वही कर्म फल बनकर जीव को प्राप्त होते हैं। कर्मों की गति पर ही जीवन चक्र आगे बढ़ता रहता है। परन्तु मुख्य प्रश्न यह है कि इन कर्मों के बंधन से मुक्त होने का मार्ग क्या है? साध्वी जी ने इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए बताया कि दिव्य ज्ञान या ब्रह्मज्ञान की अग्नि से सभी प्रकार के कर्मों को भस्म कर सकते हैं। श्रीमद्भागवद्गीता में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट रूप से यह तथ्य बताया है कि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन सद्कर्मों को करने के बाद भी ईश्वर के शाश्वत रूप से इकमिक हो मुक्त नहीं हो सकता, क्योंकि शुभ कर्म भी उसके बंधन का कारण है और वह इन कर्मों के फल को भोगने हेतु जन्म लेने को विवश है।   

कर्मों को मुख्य रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है। इनमें से पहला संचित कर्म है- पिछले जीवन के वह कर्म जो हमें आने वाले समय में फलीभूत होंगे। जीवन में घटित कई घटनाएं इन्हीं संचित कर्मों का परिणाम हैं। दूसरे प्रकार के कर्मों को प्रारब्ध कर्म कहा जाता है, जिसके आधार पर हमें जन्म व अन्य गुणों की प्राप्ति होती है, यह वह कर्म है जो हम भोग रहे हैं। तीसरे प्रकार के कर्म क्रियामान कर्म है, इस श्रेणी में वह कर्म आते है जो हम वर्तमान में कर रहे हैं।

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वे लोग बुद्धिमान हैं जो ब्रह्मज्ञान द्वारा अपने कर्मों के बंधन को निरंतर ध्यान की वास्तविक पद्धति द्वारा समाप्त करते है। ब्रह्मज्ञान ही कर्मों से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है। ध्यान के नियमित अभ्यास द्वारा कर्मफल आध्यात्मिक ऊर्जा में परिवर्तित हो ब्रह्मांडीय ऊर्जा का विकास करता है। जीवन की सत्यता से परिचित हो साधक मंत्रमुग्ध हो मुक्ति के पथ पर बढ़ने हेतु कटिबद्ध हुए।

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