दुनिया की सभी भाषायों का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गये ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ, किन्तु संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है जिसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुनकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गयी ध्वनियाँ नहीं हैं। संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं अपितु एक संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम संस्कृत है। किन्तु वर्तमान समय में संस्कृत भाषा का अलोप होता जा रहा है। संस्कृत भाषा की महत्ता को भली प्रकार जानते हुए एवं भारतीय होने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम अपनी भारतीय गरिमा की रक्षा करें। वर्तमान समय में संस्कृत भाषा को पुनः व्यवहार में लाने के लिए देश में अनेक प्रयास कार्यरत हैं जिनमें दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का मंथन-संपूर्ण विकास केंद्र नामक एक सामाजिक प्रकल्प भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को पुनः देश में स्थापित करने एवं भारतीय वैदिकी संस्कृति के पुनरुथान एवं संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा मंथन-संपूर्ण विकास केंद्र नामक एक सामाजिक प्रकल्प की नींव रखी गई जिसका उद्देश्य देश के अभावग्रस्त बच्चों को निशुल्क मूल्याधारित शिक्षा के साथ ही उनका आध्यात्मिक विकास करना है। इसी क्रम में देशभर में मंथन के 18 केंद्र कार्यरत हैं जिनमें छात्रों के लिए संस्कृत की कक्षाएं भी आयोजित की जाती हैं।
संस्कृत कक्षा में विविध गतिविधियों के माध्यम से संस्कृत भाषा को रोचक व सरल ढंग से सिखाया जाता है जिससे कि वे रोज़मर्रा की जिंदगी में संस्कृत भाषा का प्रयोग कर सकें। और अत्यंत आश्चर्यजनक बात यह है कि अन्य भाषाओँ की तुलना में बच्चे संस्कृत को कहीं अधिक जल्दी एवं रूचि के साथ सीख रहे हैं। जहाँ सभी को संस्कृत का सरल ज्ञान उपलब्ध कराया जा रहा है वहीं इसकी महत्ता के बारे में भी अवगत कराया जा रहा है कि संस्कृत केवल मात्र एक भाषा नहीं अपितु एक विचार है। यह भाषा भारत की सभ्यता से जुडी हुई है। संपूर्ण भारत में संस्कृत के अध्ययन से ही भारतीय भाषायों में अधिकाधिक एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी। केवल व्यवहार में ही नहीं जब तक हम संस्कृत को अपने चिंतन में नहीं लायेंगे तब तक देश में पूर्णरूप से शांति नहीं लायी जा सकती।