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संस्कृत शब्द  सम् उपसर्ग + “कृ” धातु से मिलकर बना है जहाँ सम् का अर्थ एक साथ एवं “कृ” का अर्थ उत्पन्न करना अथार्त बनाना है। कई वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा इस बात की पुष्टि की गयी है कि ध्वन्यात्मक रूप से संस्कृत भाषा शरीर के विभिन्न ऊर्जा बिंदुओं की मूल है। संस्कृत भाषा के पठन-पाठन एवं उच्चारण से शरीर के विभिन्न ऊर्जा बिंदुओं को सक्रिय किया जा सकता है जिसका सीधा प्रभाव मानसिक विकास एवं शरीर को विभिन्न प्रकार की व्याधियों से संरक्षित करने में है। कई अनुसंधानों से इस बात की भी पुष्टि हुई है की  संस्कृत के पठन-पाठन एवं उच्चारण से बुद्धि तीव्र होती है। इस प्रकार संस्कृत भाषा सभी मानवों में अपने सकारात्मक प्रभाव के लिए जानी जाती है। 

पिछले कुछ दशकों में विभिन्न प्रकार की आधुनिक तकनीकों का विकास हुआ है किन्तु फिर भी संस्कृत भाषा पुस्तकों तक ही सीमित है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संस्थापित दिव्य ज्योति वेद मंदिर जो कि एक शोध व अनुसंधान संस्था है का एकमात्र ध्येय प्राचीन भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान द्वारा सामाजिक रूपांतरण करना है। वैदिक संस्कृति के प्रसार एवं वेदमंत्रोच्चारण की मौखिक परम्परा को कायम करने तथा संस्कृत भाषा को व्यवहारिक भाषा बनाने हेतु दिव्य ज्योति वेद मंदिर देश भर में कार्यरत है।

दिव्य ज्योति वेद मंदिर द्वारा 8 नवंबर 2021 से 19 नवंबर 2021 तक संस्कृत संभाषण शिविर के दो सत्रों का प्रारम्भ किया गया है। जिसके द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों से 125 लाभार्थी संस्कृत संभाषण के इन सत्रों में सम्मिलित होकर लाभान्वित हो रहे है।

संस्कृत संभाषण के इन सत्रों में परस्पर संवादात्मक तरीकों जैसे संस्कृत में गणना, परस्पर परिचय , विभिन्न वस्तुों का परिचय, मोड़ एवं लघु वाक्य निर्माण के माध्यम से लाभार्थियों में संस्कृत भाषा के प्रति रुचि को विकसित किया जा रहा है।  इसके अतिरिक्त प्रतिभागियों को कई सामान्य नामों जैसे माह, वर्ष, दिन, रंग, समय ज्ञान इतियादी को संस्कृत में उच्चारित करने के विषय में भी सिखाया जा रहा है। 

दिव्य ज्योति वेद मंदिर का ध्येय मानव जानो में संस्कृत भाषा के अर्थ एवं इसकी अपार क्षमता को समझने हेतु रूचिप्रद सत्रों के आयोजन के माध्यम से संस्कृत का प्रचार करना है। 

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