ईशावस्या उपनिषद में वर्णित श्लोक -
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थ - "ओम, वह (दृश्यमान बाहरी संसार) भरा हुआ है,
यह (अदृश्य आंतरिक संसार) भी भरा हुआ है,
परिपूर्णता से ही वह परिपूर्णता आती है,
परिपूर्णता से परिपूर्णता लेने पर भी परिपूर्णता बनी रहती है,
ओम शांति शांति शांति।"
उपरोक्त श्लोक का सारांश संपूर्ण वैदिक साहित्य का आधार है । वेद का अर्थ है 'ज्ञान', जो संस्कृत के मूल 'विद्' से निकला है जिसका अर्थ है 'जानना, देखना या पहचानना'।
गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संस्थापित दिव्य ज्योति वेद मन्दिर एक शोध व अनुसंधान संस्था है जिसका एकमात्र ध्येय प्राचीन भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान द्वारा सामाजिक रूपांतरण करना है। वैदिक संस्कृति के प्रसार एवं वेद मंत्रोच्चारण की मौखिक परम्परा को स्थापित करने तथा संस्कृत भाषा को व्यवहारिक भाषा बनाने हेतु दिव्य ज्योति वेद मन्दिर देश भर में कार्यरत है। भारत के प्राचीन संस्कृत ज्ञान को संरक्षित करने हेतु दिव्य ज्योति वेद मन्दिर द्वारा विश्व स्तर पर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से संस्कृत संभाषण की नियमित कक्षाएं प्रारंभ की गई l
इसी शृंखला में संस्कृत को दैनिक जीवन में धाराप्रवाह संस्कृत भाषा के प्रयोग करने हेतु 16 से 27 मई, 2022 तक बच्चों के लिए संस्कृत संभाषण शिविर आयोजित किया गया जिसमें 74 बच्चों ने ऑनलाइन कक्षाओं के लिए नामांकन कराया। संस्कृत सीखना मूल्य शिक्षा का पर्याय है और साथ ही साथ मानव के संपूर्ण एवं ज्ञान-संबंधी विकास में भी सहायक है। बच्चों ने परस्पर संवादात्मक प्रस्तुतियों के माध्यम से संस्कृत भाषा के उच्चारण का आनंद लिया। दिव्य ज्योति वेद मन्दिर द्वारा आयोजित ऑनलाइन संस्कृत कक्षाओं में भाग लेने से, बच्चों ने महसूस किया कि यह ज्ञान स्कूल में पढ़ते समय अनुभव की जाने वाली अस्पष्टता को कम करता है और बेहतर भाषा कौशल के विकास हेतु उनकी क्षमता में सुधार करता है ।