दिनांक 11 जून, 2019 को पाथर्डी महाराष्ट्र में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित मासिक सत्संग समागम में भारी मात्रा में भक्त -श्रद्धालुगण एकत्रित हुए। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों द्वारा आत्म संतुलन के विषय में समझाते हुए बताया गया कि सांसारिक मोह एवं भोग विलासिता, आध्यात्म के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। किसी व्यक्ति एवं भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति आगे चलकर चिंता एवं नकारात्मकता जैसी भावनाओं को जन्म देती है जो कि वास्तव में इंसान के दुखों का कारण है। इस संसार की सभी पदार्थ एवं वस्तुएं क्षणिक है अतः इसमें आसक्ति से इंसान को कभी सुख प्राप्त नहीं हो सकता। इन सबसे परे ब्रह्मज्ञान एक ऐसी कला है जिसके माध्यम से इंसान जीवन के सभी उतार-चढ़ावों में खुद को संतुलित रख सकता है।
राजा भरत के दृष्टान्त के माध्यम से उन्होंने इस बात को बहुत अच्छे से समझाया। राजा भरत एक महान राजा थे। वह अपनी प्रजा का बहुत अच्छे से ध्यान रखते थे। वर्षों राज्य का कार्यभार संभाल कर उन्होंने अपने सिंहासन का त्याग कर मोक्षप्राप्ति हेतु वनों की ओर प्रस्थान किया। वहां उन्होंने अपना ध्यान ईश्वर की ओर केंद्रित किया। एक दिन नदी के तट पर उन्होंने एक हिरण शावक दिखा, जिसकी माँ उसे जन्म देने के पश्चात मर चुकी थी। दयावश उन्होंने उस शावक को अपने पास रख लिया एवं उसका लालन पालन करने लगे। अब उनका अधिकांश समय शावक की चिंता में बीतना शुरू हो गया। वह हमेश इसी उधेड़बुन में रहते कि उनके पश्चात उस शावक का ध्यान कौन रखेगा। जिस समय उनके प्राणों का अंत हुआ उस समय भी उनके मस्तिष्क में केवल वही शावक था जिसके कारण वह मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए एवं उन्हें अगला जन्म एक हिरण का ही मिला।
मानव तन परमात्मा का दिया एक अनुपम उपहार है। ईश्वर प्राप्ति ही इसका वास्तविक उद्देश्य है। उन सभी का जीवन सार्थक है जो कि संसार की मायाजाल में ना उलझते हुए, सभी सांसारिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए स्वयं की लौ उस परमात्मा से लगाते है। यह संसार क्षणभगुंर है और केवल परमात्मा का नाम ही शाश्वत है जो मरणोपरांत भी हमारे साथ रहेगा।
भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार एक व्यक्ति पुराने वस्त्र को त्याग नए वस्त्र धारण करता है ठीक उसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में जाती है। अतः जो इस संसार से चले गए उनके लिए विलाप नहीं करना चाहिए। ब्रह्मज्ञान द्वारा ही मनुष्य सुख एवं दुःख जैसी अवस्थाओं से अप्रभावित होते हुए खुद को संतुलित रख सकता है। प्रेरणादायी सत्संग विचारों के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ।