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दिनांक 20 से 24 सितंबर, 2019 तक फतेहाबाद, पंजाब में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य सानिध्य में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) की  पंजाब शाखा सुनाम द्वारा 5 दिवसीय शिव कथा का भव्य आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धालुगण सम्मिलित हुए।

Shiv Katha at Fatehabad, Haryana Decoded the Symbolic Meaning of Lord Shiva's Dance

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि तांडव भगवान शिव द्वारा किया जाने वाला एक दिव्य नृत्य है जो कि इस सम्पूर्ण  सृष्टि के सृजन, संरक्षण एवं विघटन का प्रतीक है। कथा के माध्यम से साध्वी दिवेशा भारती जी ने बताया कि किस प्रकार यह नृत्य शैली अस्तित्व में आई। एक बार ऋषि वेमंशा यज्ञ कर रहे थे, तभी एक व्यक्ति उनके समीप से गुज़रा जिसके मुख मंडल पर अद्भुत तेज एवं परमानंद की आभा छलक रही थी।  यह व्यक्ति कोई और नहीं अपितु स्वयं भगवान शिव ही थे किन्तु दुर्भाग्यवश वेमंशा ऋषि उन्हें पहचान ना पाए एवं भगवान शिव की इस स्तिथि से उनके अंदर असुरक्षा की भावना घर कर गई और उन्होंने उस व्यक्ति अर्थात भगवान शिव को मारने का निर्णय किया। तब उन्होंने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर हवनकुंड की अग्नि से एक बाघ उत्पन्न किया और उसे भगवान शिव की ओर फेंक दिया। यह देख भगवान शिव ने प्रसन्नचित्त मुद्रा में ही अपने जबड़े से उस बाघ को पकड़ के खत्म कर डाला एवं उसकी खाल को अपने शरीर के चारों ओर लपेट लिया। यह देख समस्त ऋषिगणों ने पुनः मन्त्रों का उच्चारण किया और एक अत्यंत ज़हरीले सांप को उत्पन्न किया। भगवान शिव ने सहर्ष ही उस सर्प को एक सुन्दर आभूषण की तरह अपने गले में पहन लिया। यह देख वेमंशा ऋषि अत्यंत कुपित हो गए और उन्होंने अब अपस्मरा नामक दानव को भगवान शिव का अंत करने के लिए भेजा।  दानव ने पूरे बल के साथ भगवान शिव पर प्रहार किया किन्तु महादेव ने उस दानव की पीठ तोड़ उसके ऊपर नृत्य करना आरम्भ कर दिया। उनकी प्रत्येक मुद्रा, भाव भंगिमा पूर्णता से अलंकृत थी। महादेव का यह स्वरुप देख सभी देवी- देवता भी अचंभित  हो उठे।  भगवान शिव द्वारा की गई अंतिम मुद्रा, नटराज मुद्रा के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। ऋषि भरत ने जब इस नृत्य को देखा तब उन्होंने भगवान शिव की प्रत्येक मुद्रा एवं अभिव्यक्ति का अध्यन किया एवं विश्व के समक्ष नाट्य शास्त्र को प्रस्तुत किया।

साध्वी जी ने समझाया कि महादेव का यह नृत्य प्रतीकात्मक है।  वेमंशा ऋषि की ही भांति हमारा मन भी असुरक्षा की भावना से घिरा रहता है, परिणामस्वरूप क्रोध एवं अन्य विकट परिस्थितयों रुपी बाघ हमारे भीतर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार अपस्मरा दानव अज्ञानता का प्रतीक है जो हमारी आत्मिक उन्नति में बाधा उत्पन्न करता है। अतः भगवान शिव हमें सन्देश देते हैं कि हमें भी उस कला को जानने की आवश्यकता है जिसके माध्यम से हम प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थितयों में स्वयं पर आने वाली विपदा, एवं अपने प्रत्येक दोष को आभूषण में परिवर्तित कर पाए और अपनी प्रत्येक कमज़ोरी को अपनी ताकत में बदल दें।

Shiv Katha at Fatehabad, Haryana Decoded the Symbolic Meaning of Lord Shiva's Dance

साध्वी जी ने समझाया कि वर्तमान समय में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ब्रह्मज्ञान की कला के माध्यम से मानव हृदय में व्याप्त नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। महाराज श्री द्वारा संस्थापित एवं संचालित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान समाज के उत्थान के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर कार्यरत है। शिव कथा संस्थान के आध्यात्मिक शाखा की एक श्रृंखला है जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण विश्व तक ईश्वर के दिव्य सन्देश को पहुँचाना है जिससे प्रत्येक मानव अपने घट के भीतर उस परमसत्ता की प्रत्यक्ष अनुभूति कर सके एवं आत्म उन्मुख हो पाए।

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