संस्कृत में शिव 'शुभ' का प्रतीक है। वो दिव्य शक्ति जो प्रतीक है परोपकार का, आंतरिक शांति का। भगवान शिव एक महायोगी और त्रिमूर्ति में से एक हैं जिन्होंने मन और आत्मा पर विजय प्राप्त की है। वह परमपिता परमात्मा योगियों और ब्राह्मणों के संरक्षक, पालनहार एवं मोक्षप्रदाता है। शिव कथा के आयोजन के माध्यम से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान प्रयासरत है भगवान शिव से जुड़े आध्यात्मिक पहलु एवं रहस्यों को भक्त श्रद्धुलुओं के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की दिव्य अनुकम्पा से फगवाड़ा, पंजाब में 1 से 5 फरवरी, 2019 तक 5 दिवसीय शिव कथा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कथा व्यास साध्वी सौम्या भारती जी ने धर्म शास्त्रों के अनुसार शिव कथा का सुन्दर व्याख्यान किया।
साध्वी जी ने कहा कि शिव वह शक्ति है जो इस ब्रह्माण्ड के केंद्र में स्थित है। वो महाकाल हैं जिनके ग्रास में जीवन समा जाता है किन्तु मृत्युपरांत पुनः एक नए जीवन का आरम्भ होता है अर्थात सृजन, विनाश, उत्पत्ति एवं वियोग उनके चरित्र का हिस्सा है। भगवान शिव का महालिंग स्वरुप उनके निराकार रुप की अभिव्यक्ति है। वो योगियों के योगी महायोगी हैं। भगवान शिव का सदैव ध्यान में स्तिथ स्वरुप हमें ब्रह्मज्ञान के माध्यम से आत्मोन्मुख होने के प्रेरणा देता है। साध्वी जी ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भगवान शिव के मस्तक पर स्तिथ तृतीय नेत्र, दिव्य नेत्र है जो उस परम चैतैन्य सत्ता से जोड़ने का कार्य करता है, जिसके द्वारा हम बाह्य दुनिया से अलग, आंतरिक दुनिया में प्रवेश कर पाते हैं। दिव्य नेत्र के खुलने से हमारे मन की मलिनताएँ समाप्त होती हैं और ब्रह्म में स्थिर हो उस चिरआनन्द को प्राप्त होते हैं भगवान शिव का खुले दिव्य नेत्र के साथ ध्यान मुद्रा में बैठा स्वरुप हमीं यही सन्देश देता है।
साध्वी जी ने बताया की हमारे धर्म ग्रंथों में यह निहित है कि प्रत्येक मनुष्य के पास यह 'तृतीय नेत्र है, जो केवल एक सद्गुरु द्वारा ही खुलता है और मनुष्य अपने अंतर्घट में ईश्वर का दर्शन कर पाता है। जहाँ आत्मा संकेत है माँ पार्वती की तो वहीँ भगवान शिव प्रतीक हैं उस पारब्रह्म परमेश्वर के। शिव और शक्ति ने मिलकर इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति की है। आत्मा का परमात्मा से एकीकरण ही इस जीवन का परम लक्ष्य है। वह परमसत्ता ईश्वर ही आत्मा का सार है।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी एक ऐसे ही पूर्ण संत हैं जो ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उस ज्ञानाग्नि को मानव के अंतर्घट में प्रज्वलित कर रहे हैं। श्री महाराज श्री ने दिव्य शांति का महान लक्ष्य निर्धारित किया है और वर्तमान में वह जन जन के बीच उसी ब्रह्मज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे हैं जिसे भगवान शिव ने माँ पार्वती को प्रदान किया था।
अंत में साध्वी जी ने बताया कि आज इंसान को पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आराधना की सही विधि का पालन करना चाहिए और जीवन में तलाश करनी चाहिए शिव जैसे महायोगी की जो ब्रह्मज्ञान प्रदान कर हमें आध्यात्म के पथ पर अग्रसर कर सके एवं जिसके निरंतर अभ्यास से हम जीवन जीने की उत्कृष्ट कला से अवगत हो पाए।