श्री कृष्ण का जन्म मानव जाति के भाग्योदय एवं आध्यात्मिक पुनरुत्थान हेतु हुआ था। उन्होंने मानव जाति को धर्म एवं भक्ति के वास्तविक मार्ग की ओर अग्रसर किया। अपने सम्पूर्ण जीवन काल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। उनकी प्रत्येक लीला आध्यात्मिकता से परिपूर्ण थी जिसके माध्यम से उन्होंने इस संसार में रहते हुए भी मोहमुक्त होते हुए , अपनी प्रत्येक लीला को संपन्न किया।
भक्ति के वास्तविक अर्थ को समझाने हेतु, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा 27 अप्रैल से 1 मई, 2019 तक पंजाब के सुजानपुर में श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया। भजनों की अनुपम श्रृंखला ने भक्ति का वास्तविक अर्थ बताते हुए कार्यक्रम में उपस्थित भक्त श्रद्धालुओं को भक्ति के चरमोत्कर्ष से अवगत कराया।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथाव्यास साध्वी सुमेधा भारती जी ने भगवान कृष्ण के जीवन दर्शन के माध्यम से भक्ति का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने जीवन एवं मृत्यु दोनों को मनाया। उनका सम्पूर्ण जीवन प्रत्येक युग के लिए एक आदर्श है। श्रीमद् भगवद् गीता मानव जाति के लिए उनके द्वारा प्रदत एक अनुपम उपहार है। जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में मोह ग्रसित हो कर, शस्त्र त्याग चुका था उस समय भगवान श्री कृष्ण ने उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान किया और उसे धर्मयुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया।
गोपियों के साथ की रास लीला के माध्यम से उन्होंने भक्ति के उत्कृष्ट उदाहरण को प्रस्तुत किया, जहाँ सैकड़ों गोपियाँ एक आठ वर्षीय बालक के साथ झूम रही थी। प्रत्येक गोपी के साथ एक कृष्ण। श्री कृष्ण ने समाज को समझाया कि बाधाओं के बीच रहते हुए जीवन को कैसे सफल किया जा सकता है। उन्होंने समझाया कि आत्मसाक्षात्कार के लिए अपने रिश्ते नातों से दूर होने की कोई आवश्यकता नहीं हैं अपितु इन संबंधों को प्रेमपूर्वक निभाते हुए अपने सभी दायित्वों को पूर्ण करते हुए भी हमें स्वयं को आसक्ति मुक्त रखना चाहिए।
साध्वी जी ने बताया कि ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति जब आध्यात्म जगत में प्रवेश करता है उसके उपरांत ही वह श्रीमद भागवत पुराण में निहित दिव्य एवं गूढ़ रहस्यों को समझ पाता है।