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द्वापर युग में धरा पर धर्म को पुन: स्थापित करने के लिए श्रीकृष्ण ने जगतगुरु रूप में अवतार धारण कर लोगों को धर्म के वास्तविक आनंद का अनुभव करने के लिए प्रेरित किया। इसी प्रकार, आज के समय के पूर्ण सतगुरु परम पूजनीय श्री आशुतोष महाराज जी भी लोगों का आध्यात्मिक क्रांति में सम्मिलित होने के लिए आह्वान कर रहे हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु, पंजाब के सुनाम क्षेत्र में 10 अप्रैल से 14 अप्रैल 2018 तक श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया। प्रभु की पवित्र कथा ने उपस्थित लोगों के जीवन में आनंद के झरनों के रूप में वास्तविक आनंद से जोड़ते हुए  उन्हें परम व शाश्वत सत्य से जोड़कर जीवन के हर दुःख के निवारण का मार्ग सुझाया|

पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का शुभारंभ मंगल  कलश यात्रा से किया गया जिसमें सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। इसके द्वारा क्षेत्रवासियों को इस भव्य कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी की साध्वी शिष्या सुश्री रुपेश्वरी भारती जी ने वक्ता की भूमिका निभाते हुए भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं, प्रेरणाओं व शिक्षाओं का विस्तार किया। सुमधुर भजनों द्वारा भक्तों की भावनाओं को भगवान के समक्ष प्रस्तुत भी किया गया| साध्वी जी ने कहा कि श्रीकृष्ण दुष्टों के संहार और भक्तों को अपने दिव्य दर्शन से कृतार्थ करने हेतु ही अवतारित हुए थे। युगों से प्रभु भक्ति में डूबे भक्त, द्वापर युग में गोपियों और ग्वालों के रूप में धरती पर आए और भगवान श्रीकृष्णा ने उन्हें अपने प्रेम व सान्निध्य का उपहार प्रदान दिया। उन्होंने साधारण ग्वालों के संग खेल खेलते हुए, माखन चुराते व ग्रहण करते हुए और उन्हें बहुत से राक्षसों से भी बचाया। यूँ तो, श्री कृष्ण एक छोटे से साधारण बालक दिखते थे लेकिन 'ब्रह्मज्ञान' में दीक्षित जन यह जान गए कि वह कोई सामान्य नहीं, बल्कि एक असाधारण बालक हैं। साध्वी जी ने भक्त अक्रूर के जीवन के एक सुन्दर दृष्टांत को प्रस्तुत करते हुए इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझाया| राजा कंस ने श्री कृष्ण को मृत्यु प्रदान करने की इच्छा से अक्रूर जी को वृन्दावन जाकर कृष्ण को मथुरा लाने का आदेश दिया| अक्रूर जी जब श्रीकृष्ण को संग ले बढ़ रहे थे तो वह उनकी जीवन रक्षा के प्रति चिंतित हो उठे| लेकिन मार्ग के दौरान, श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्म जाग्रति के शाश्वत विज्ञान 'ब्रह्मज्ञान' में दीक्षित कर उनकी समस्त चिंताओं को दूर कर दिया| जब पूर्ण तत्ववेता सतगुरु एक मनुष्य के भीतर सर्वशक्तिमान परमात्मा के धाम ‘दिव्य नेत्र’ को जागृत करते हैं तब आत्मा परमात्मा से जुड़ जाती है और मनुष्य आंतरिक दुनिया के अंतहीन दृश्यों का आनंद उठा पाता है|

उन्होंने भक्त द्रौपदी की गाथा को भी विस्तारपूर्वक वर्णित करते हुए बताया कि भक्त को सदैव ईश्वर पर अटूट विश्वास बनाए रखना चाहिए। सभी परिवारजनों के समक्ष द्रौपदी का शोषण किया जा रहा था, लेकिन कोई भी ज़रूरत के समय उसकी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ा। पर वहीं, जैसे ही वह  'सुमिरन' द्वारा भगवान से जुड़ गई तो श्रीकृष्ण ने उस सभा में प्रकट होकर उसे संरक्षित किया। साध्वी जी ने भगवान श्रीकृष्ण के भक्त-प्रेम के अधीन हो भक्तवत्सलता को उजागर करती बहुत सी गाथाओं का भी सुंदर प्रस्तुतिकरण किया| बड़ी तादात में उपस्थित भक्त जीवन में 'सतगुरु' के महत्व को समझते व स्वीकार करते हुए ब्रह्मज्ञान में दीक्षित भी हुए| समाज की संरचना में सुधार के लिए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों से सभी बहुत ही प्रभावित नजर आए| साथ ही, बहुत से क्षेत्रनिवासियों ने श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा प्रारंभ की गई इस दिव्य आध्यात्मिक क्रांति में शामिल होने की इच्छा भी प्रकट की|
 

Shri Krishna Katha Elaborated the Meaning of True Love at Sunam, Punjab

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