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जब-जब भी मानवता अधर्म के पथ की ओर बढ़ी तथा समाज में अत्याचार व पापाचार बढ़ने लगा, तब-तब ईश्वर समाज में धर्म को स्थापित करने व सुचारू रूप से चलाने हेतु इस धरा पर अवतरित होते हैं। द्वापरयुग में दिव्य शक्ति ने श्री कृष्ण रूप में इस धरा पर अवतार को स्वीकार कर, पृथ्वी को पाप व अधर्म से मुक्त किया। श्री कृष्ण का जीवन चरित्र व उनके उपदेश समाज को यही शिक्षा देते हैं कि जीवन में चाहे कैसी भी विपरीत परिस्थिति आए परन्तु सदैव संतुलन बनाते हुए उन संघर्षों से पार उतरना सम्भव है। श्री कृष्ण को भारतीय शास्त्रों में पूर्ण अवतार के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसमें सरसता के साथ-साथ गंभीरता भी है, रस के साथ-साथ वैराग्य भी है। जगद्गुरु श्री कृष्ण प्रेम व ज्ञान के प्रतीक हैं, जिनमें दया के साथ-साथ पाप को समाप्त करने हेतु कठोरता का भी समन्वय है। वर्तमान में स्वार्थ के वशीभूत हो नैतिकता के शिखर ध्वस्त हो रहे हैं, इसलिए आज श्री कृष्ण के उपदेशों व शिक्षाओं की नितांत आवश्यकता है। 

Shri Krishna Katha Inspired Devotees to Lead a Divine Life at Hansi, Haryana

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा श्री कृष्ण की शिक्षाओं को पुनः समाज के समक्ष रखने हेतु हांसी, हरियाणा में, 28 अगस्त से 01 सितंबर 2019 तक पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कथा का शुभारम्भ ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा वेद-मंत्रोच्चारण व संत समाज द्वारा श्री कृष्ण महिमा के गायन से हुआ। कथा का वाचन सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथाव्यास साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने किया। साध्वी जी ने श्री कृष्ण के अनेक नामों में निहित आध्यात्मिक रहस्यों को प्रगट किया। उन्होंने समझाया कि भगवान कृष्ण द्वारा बांसुरी को सदैव अपने समीप रखने का तात्पर्य है कि अहंकार रहित हृदय ही प्रभु को प्रिय है और प्रभु उसे ही स्वीकार करते हैं। सतगुर द्वारा प्राप्त ब्रह्मज्ञान (ईश्वरीय ज्ञान) हमें क्रोध, अहंकार और नकारात्मकता जैसी भावनाओं से मुक्त करता है। ध्यान का अभ्यास ही मानव को पवित्रता और सकरात्मकता आदि गुणों से परिपूर्ण करते हुए देवत्व की ओर अग्रसर करता है।

साध्वी जी ने श्री कृष्ण लीलाओं में निहित रहस्यों को प्रगट करते हुए, मानव जीवन में इनकी उपयोगिता को रखा। गोवर्धन लीला पर अपने विचारों को रखते हुए उन्होंने बताया कि वर्षा के लिए सभी ग्रामवासी इंद्र की पूजा करते थे, परन्तु श्री कृष्ण ने उन्हें इस रुढ़िवादी प्रथा के त्याग की शिक्षा देते हुए समझाया कि उन्हें इंद्र की नहीं अपितु गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। गोवर्धन की पूजा से इंद्र देव ने कुपित होकर मुसलाधार वर्षा की जिससे चहुँ ओर प्रलय के समान स्थिति बन गयी। ग्रामवासियों को इस विकट परिस्थिति से मुक्त करने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और सभी के प्राणों की रक्षा की। ठीक इसी प्रकार पूर्ण सतगुरु भी मानव को मन के अनुसार नहीं अपितु ज्ञान के सानिध्य में आने की शिक्षा देते है व साथ ही ज्ञान की आराधना करने वाले भक्तों के जीवन में आने वाले कष्टों से  उनका रक्षण भी स्वयं ही करते हैं। वर्तमान में पूर्ण सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी भी अपने शिष्यों को संसार के अशुभ कार्यों से सुरक्षित करते हुए, हर कदम पर उनका मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें बाहरिय और भीतरिय बाधाओं से बचाते हैं। कार्यक्रम का समापन, उपस्थित लोगों द्वारा भगवान श्री कृष्ण के सिद्धांतों को जीवन में धारण करने की मंगल कामना से हुआ।

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