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अनादि काल से, भगवान श्री कृष्ण अथाह ज्ञान, धार्मिकता, दिव्य प्रेम और भक्ति के प्रतीक हैं। श्री कृष्ण को दिव्य मित्र, दिव्य प्रेमी और भगवान के पूर्ण रूप में स्वीकार किया गया है। बाहरी दृष्टि व बाहरी प्रयासों से युद्वंश शिरोमणि कृष्ण की वास्तविकता की थाह पाना सम्भव नहीं है। उन्हें समझने व जानने के लिए दिव्य ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) की आवश्यकता है। इस बहमज्ञान को प्रकट करने के लिए ‘श्री कृष्ण कथा’ एक सशक्त माध्यम है। इसी के अंतर्गत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा फिरोजपुर, पंजाब में 18 से 22 अगस्त, 2019 तक श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया।

Shri Krishna Katha Lead Devotees on the Path of Divine Knowledge in Ferozepur, Punjab

संस्थान के संस्थापक और संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने अनेक श्लोकों द्वारा कथा का वर्णन करते हुए बताया कि श्री कृष्ण की हर लीला दिव्य व अलौकिक रहस्यों से ओत-प्रोत है। उनके जीवन की लीलाएं मानव जीवन का हर परिस्थिति में मार्ग प्रशस्त करती हैं। जगद्गुरु श्री कृष्ण ने 'ब्रह्मज्ञान' के दिव्य रहस्य को प्रगट किया जो व्यक्ति व समाज कल्याण के लिए अनिवार्य है। आधुनिक युग को बुराइयों से मुक्त करवाने और सामाजिक परिवर्तन को स्थापित करने हेतु इस दिव्य प्रक्रिया की आवश्यकता है।

वर्तमान में मानव भावनाओं, लोभ और भौतिकवादी सुखों से प्रेरित हो, उनका गुलाम बन चुका है और मात्र सांसारिक कामों व सामाजिक बंधनों से घिरा है। इन समस्याओं से मुक्त होने के लिए ध्यान आजकल एक प्रचलित शब्द बन गया है परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक शांति प्राप्त करने हेतु समाज ध्यान की पूर्ण तकनीक से अनभिज्ञ हैं। ध्यान, वास्तव में ‘दिव्य नेत्र’ के उद्घाटन से आरम्भ होता है जिसे केवल एक पूर्ण सतगुरु द्वारा ही प्रगट किया जा सकता है। वास्तविक अर्थों में भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का पालन करने के लिए 'ब्रह्मज्ञान' को प्राप्त करना होगा तभी मानव जाति को सामाजिक और नैतिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है। यह ज्ञान मनुष्य में परोपकार और करुणा की भावनाओं को विकसित करता है जो अंततः उन्हें स्वयं और समाज के कल्याण की ओर ले जाता है।

Shri Krishna Katha Lead Devotees on the Path of Divine Knowledge in Ferozepur, Punjab

श्री कृष्ण आदर्श उदाहरण हैं कि किस प्रकार बाधाओं व विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन को श्रेष्ठता व सफलता तक ले जाना सम्भव है। हमें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए अपने रिश्तों व सांसरिक कर्तव्यों के त्याग की अनिवार्यता नहीं है अपितु श्री कृष्ण का संदेश यही है कि संसारिक कार्यों को अनासक्त भाव से पूर्ण करते हुए, मुक्ति के मार्ग की ओर बढ़ने का प्रयास करते रहो।

कथा के प्रत्येक दिन श्रोताओं की बढ़ती संख्या ने कथा की सफलता को चिन्हित किया। इस कथा में हजारों आध्यात्मिक जिज्ञासु उपस्थित हुए व अनेकों भक्तों ने ब्रह्मज्ञान प्राप्ति की अभिलाषा को व्यक्त किया। कथा के दौरान, संत समाज ने संगीतमय, भावपूर्ण और मधुर आध्यात्मिक रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और उनके हृदयों को स्पर्श करते हुए उन्हें भक्तिपथ पर बढ़ने हेतु प्रेरित किया। संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में संलग्न प्रत्येक ब्रह्मज्ञानी शिष्य ने समाज को ब्रह्मज्ञान द्वारा जागृत हो विश्व शांति के महायज्ञ में योगदान के लिए आमंत्रित किया।

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