यह भगवान की दिव्य शक्ति है कि वह यह अच्छी तरह से जानता है कि उसकी संतान के लिए क्या उचित और अनिवार्य है। इससे पहले कि हम अपनी इच्छाएँ उसके आगे रखें वह हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। लेकिन भगवान कभी ऐसी कोई इच्छा पूरी नहीं करते जो हमारे लिए हानिकारक हो। 22 मई से 26 मई 2018 तक संस्थान द्वारा सुल्तानपुर लोधी, पंजाब में आयोजित की गई पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा में भगवान के ऐसे अनेक दिव्य कार्यों को जनता के सामने प्रस्तुत किया गया। इस पवित्र कथा का सरस वाचन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सौम्या भारती जी ने किया।
मंगल कलाश यात्रा से कथा की शुरुआत की गई जिसमें वैदिक मंत्रोचारण करते हुए सैकड़ों सौभाग्यवती महिलाओं ने मंगल कलश अपने सिर पर धारण किए। भारतीय संस्कृति अनुसार कलश यात्रा किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने के लिए एक शुभ कार्य माना जाता है। भगवान कृष्ण के चरण कमलों में प्रार्थना के साथ प्रत्येक दिन का आरंभ और समापन हुआ। साध्वी जी ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का सरस वर्णन किया। भगवान की हर लीला भक्तों के लिए गहरा आध्यात्मिक अर्थ प्रस्तुत करती है। इसी दौरान साध्वी जी ने भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग प्रसारित किया। वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि सुदामा भगवान का बचपन का मित्र था जिसके साथ उन्होंने गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की थी। गरीबी के कारण कुछ मदद मांगने के उद्देश्य से अपनी पत्नी के कहने पर जब सुदामा भगवान से मिलने के लिए आए, तो भगवान कृष्ण उनसे बड़े प्रेम भाव से मिले। सुदामा ने उपहार के रूप में कुछ चावल भगवान को भेंट करने के लिए साथ लिए थे। भगवान की भव्यता को देखकर जब सुदामा उन्हें अर्पित करने में हिचकिचाने लगे, तब श्री कृष्ण ने उन चावल को बहुत ही प्रेम व भाव से साथ ग्रहण किया। साध्वी जी ने समझाया कि भगवान किसी भी भेंट के मूल्य को नहीं देखते बल्कि उनके लिए कुछ मायने रखता है तो वह है भक्त की निश्चल भावनाएं और भक्ति। सुदामा अपने संकोच के कारण अपने भगवान से कुछ भी मांगने में सक्षम नहीं थे। लेकिन जब वह घर वापस पहुंचे, तो पाया कि भले ही उन्होंने अपने ईश्वर से कुछ नहीं कहा, फिर भी उनके भगवान को सबकुछ ज्ञात था। श्री कृष्ण ने उनके कहे बिना ही उनकी सारी इच्छाओं को पूरा किया था। यही ईश्वर की दिव्यता व अंतर्यामिता है। प्रभु की दिव्यता, उदारता व करुणा को दर्शाते ऐसे कई उदाहरणों का उल्लेख साध्वी जी ने किया।
इसी मानवीय देह में ईश्वरीय साक्षात्कार करवाने की सनातन विधि ‘ब्रह्मज्ञान’ की चर्चा भी साध्वी सौम्या भारती जी ने लोगों के समक्ष की। उन्होंने जीवन में ब्रह्मज्ञान के महत्व पर भी प्रकाश डाला। भक्त संगीतकारों द्वारा दिव्य आभा का प्रसार किया गया। कथा और संगीत के सही संयोजन ने दर्शकों को अभिभूत कर दिया। कार्यक्रम में प्रत्येक गुजरते दिन के साथ दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई। वैदिक पद्धति अनुसार यज्ञ हवन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। कार्यक्रम एक बड़ी सफलता के रूप में चिह्नित किया गया।