एक दार्शनिक ने अपने विचारों में कहा है कि दर्द अपरिहार्य है, लेकिन पीड़ा वैकल्पिक है। जीवन में मानव शारीरिक दर्द की उपस्थिति के बावजूद इसके प्रभाव को जीत कर दुख को कम कर सकता है, जो ध्यान द्वारा सम्भव है। ध्यान में निहित गहन रहस्यों को प्रकट करने के लिए, सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने 2 जून, 2019 से 8 जून, 2019 तक रोपड़, पंजाब में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया।
कथा का शुभारम्भ ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा वैदिक मंत्र उच्चारण से हुआ व साथ ही संत समाज ने भगवान के चरण कमलों में दिव्य स्तुति का गायन कर मन को स्थिरता प्रदान की। भगवान श्री कृष्ण की दिव्य व विभिन्न लीलाओं के भक्तिपूर्ण वाचन ने सभी के मन में भक्ति का प्रदुर्भाव किया।
साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने स्पष्टता से इस तथ्य को रखा कि मात्र भौतिक नेत्रों का बंद हो जाना ध्यान नहीं है। बल्कि दिव्य नेत्र खुलने पर है ध्यान प्रक्रिया का आरम्भ होता है। ध्यान न तो कुछ योगासन है, न ही केवल आंखें बंद करके कल्पना और चिंतन है, न ही इसका अर्थ है किसी बाहरी वस्तु पर दृष्टि को स्थित करना, और न ही सीमित बुद्धि के माध्यम से गहन विश्लेषण करना है। ध्यान प्रक्रिया का आरम्भ ध्याता से समक्ष ध्येय के प्रगट होने पर होता है।
हाल ही में शोध अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि ध्यान मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। जिन लोगों को ध्यान का अभ्यास नहीं उनकी तुलना में निरंतर ध्यान अभ्यास करने वालों के मस्तिष्क अधिक सक्रिय पाए गए। प्रमुख शोधकर्ता ने बताया कि जो लोग लगातार ध्यान लगाते हैं उनमें एक विलक्षण और असाधारण क्षमता होती है, जो उन्हें सकारात्मक भावनाओं का पोषण करने, भावनात्मक रूप से स्थिर रहने और स्थिर व्यवहार में सक्षम बनाती है।
साध्वी जी ने आगे बताया कि पूर्ण सतगुरु ब्रह्मज्ञान की शाश्वत विधि द्वारा दिव्य नेत्र (भौंहों के बीच माथे पर स्थित सूक्ष्म शक्ति केंद्र) को जागृत करते है जिससे साधक आज्ञाचक्र पर अद्भुत दिव्य प्रकाश व अन्य अनुभूतियों का अनुभव कर पाता है। यही वास्तविक ध्यान प्रक्रिया का आरम्भ है। ध्यान सर्वोच्च चेतना के साथ संबंध स्थापित करना है, सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है, जो एक श्रेष्ठ जीवंत नैतिक व्यक्तित्व बनाने के लिए अनिवार्य है। साध्वी जी ने अनेक तथ्यों को रखते हुए बताया कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी, वर्तमान समय के पूर्ण सतगुरु हैं, जो ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ध्यान की शाश्वत तकनीक का प्रसार कर रहे हैं।