श्रीमद्भागवत महापुराण, आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करते हुए जीवन की सम्पूर्ण समस्याओं का समाधान प्रदान करता है। यह पवित्र ग्रंथ युगों से सच्चे साधकों के लिए प्रकाश पुंज रहा है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संचालक व संस्थापक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में 20 मई 2019 से 26 मई 2019 तक नरेला (दिल्ली) में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया। कथा व्यास साध्वी सुश्री पद्महस्ता भारती जी ने कथा वाचन द्वारा वर्तमान में सफल व शांतिपूर्ण जीवन प्राप्ति हेतु श्री कृष्ण के आदर्शों की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला।
साध्वी जी ने भगवान कृष्ण द्वारा प्रदत्त कर्मयोग की व्याख्या करते हुए बताया कि कोई भी जीव कर्म का त्याग नहीं कर सकता। यदि मानव इन्द्रियों से कर्म न करे तो भी विचारों द्वारा वह निरंतर कर्मरत रहता है। अधिकतर मानव, मन द्वारा एक काल्पनिक संसार का निर्माण कर लेता है, जिसमें वह बिना किसी बाधा के निरंतर लिप्त रहता है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण के अनुसार अकर्म की धारणा सत्य नहीं है। भगवद्गीता में प्रभु का कथन है कि मानव कर्म रहित नहीं हो सकता, परन्तु कर्म बंधन से मुक्ति हेतु उसे निष्काम भाव से कर्म करने का अभ्यास करना चाहिए। निष्काम कर्म का अभिप्राय है कि हर परिस्थिति में फल की इच्छा का त्याग कर अपने कर्तव्य को पूर्ण करना। कर्मफल की इच्छा ही जीव को जन्म और मृत्यु के चक्र में उलझाए रखती है। निष्काम भाव की प्रक्रिया ही मानव को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पीड़ा से मुक्ति की ओर बढ़ाने में सक्षम है।
महाभारत काल में युद्धभूमि पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ईश्वरीय दर्शन अर्थात ब्रह्मज्ञान की सनातन विधि प्रदान की थी। आदिकाल से आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध सतगुरु, ईश्वर खोजियों को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उन्हें कल्याण मार्ग की ओर अग्रसर करते आए हैं। पूर्ण सतगुरु वह महान विभूति हैं जो अपनी कृपा व दिव्य ऊर्जा द्वारा साधक के भीतर ईश्वर की दिव्यता को प्रगट कर देते हैं। ब्रह्मज्ञान की सनातन विधि द्वारा सतगुरु, शिष्य के दिव्य नेत्र को जागृत करते हैं। दिव्य नेत्र के प्रगट होने पर शिष्य का जीवन दिव्य प्रकाश की आभा से पूर्ण हो जाता है तथा वह जन्म- मरण के बंधन से मुक्ति की ओर अग्रसर हो पाता है। साधक, ध्यान के निरंतर अभ्यास से ईश्वर से दिव्य सम्बन्ध स्थापित करता है, जिससे उसका जीवन आनंद से परिपूर्ण हो जाता है। सार्वभौमिक व सर्वोच्च चेतना से जुड़कर साधक जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहता है। कथा के माध्यम से साध्वी जी ने दर्शकों से आग्रह किया कि वह जीवन में पूर्ण गुरु के सानिध्य को प्राप्त कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा का आरम्भ करें।