किसी भी देश, समाज और सभ्यता के विकास का उत्तरदायित्व एक शिक्षक के कंधों पर अधिक होता है। शिक्षक ही अपने उत्कृष्ट आचरण से विद्यार्थियों में उदात्त मनोवृत्ति का बीजारोपण कर सकता है जो भविष्य में सभी के लिये फलदायी होता है। वस्तुतः यही शिक्षा का उद्देश्य भी है। शिक्षकों के इस उत्तरदायित्व को समझते हुए मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र द्वारा अध्यापकों के लिए समय-समय पर "शिक्षक ग्रूमिंग वर्कशॉप" का आयोजन किया जाता है। इन वर्कशॉप का मुख्य उद्देश्य अध्यापकों को अधिक जागरुक, चिंतनशील और उत्तरदायित्वपूर्ण बनाना है जिससे कि उनमें सक्रिय विचार क्रांति का प्रवाह सतत चलता रहे। इसी श्रृंखला में 26 दिसंबर 2020 को एक वर्कशॉप का ऑनलाइन आयोजन किया गया जिसका विषय रहा-"Awaken the potential from within"।
मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का एक सामाजिक प्रकल्प है जो देश के अभावग्रस्त बच्चों को निशुल्क और मूल्याधारित शिक्षा प्रदान करने के साथ ही उनके मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं शारीरिक विकास करने में संलग्न है।
इस सत्र में अभिप्रेरक की भूमिका नीरज कुमार (Corporate Trainer and Consultant) ने अदा की। उन्होंने प्रत्येक मानव में विद्यमान विशेष शक्तियों को स्मरण कराते हुए कहा कि मनुष्य दो प्रकार की शक्तियों से अपने सभी कार्यों को पूरा करता है। एक शारीरिक शक्ति (परंतु जिसकी सीमाएं हैं), दूसरा बौद्धिक शक्ति (जो अनंत है)। पहली जहाँ केवल दिन भर की रोज़ी-रोटी प्राप्त कराने तक ही सीमित है, तो वहीं दूसरी असंभव-से-असंभव कार्य को संभव बनाने की क्षमता रखती है। किंतु आज अधिकतर लोग अपनी असीम शक्तियों को किनारे रख केवल जीविका के कुछ साधन जुटाने में ही लगे हुए हैं और निराश होते हैं कि वे जीवन में सफल क्यों नहीं हैं। शिक्षा का क्षेत्र भी वर्तमान में व्यवसाय का साधन बन चुका है। शिक्षक केवल पाठ्यक्रम को पूरा करने में जुट जाते हैं। न ही स्वयं स्वाध्याय करते हैं, और न ही छात्रों का उनकी असीम शक्तियों से परिचय करा पाते हैं। इन असीम शक्तियों को कैसे जाना जाए, इसका समाधान देते हुए उन्होंने कहा कि हर मानव के लिये आवश्यक है कि वह दिन भर में अपने सभी कार्यों को पूरा करने के बाद इंटरनेट, टीवी आदि में अपना समय व्यर्थ गंवाने की बजाय वह समय अपने आत्मज्ञान में लगाए। इससे व्यक्ति अपने भीतर विद्यमान शक्तियों और प्रतिभाओं को जान पाता है और उसी अनुसार सही दिशा में अपने जीवन को लगा पाता है। कोई भी सफल मनुष्य इस प्रक्रिया से होकर ही सफल और महान बन पाया है। आंतरिक शक्ति व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक बनाए रखती है। इस पूरी प्रक्रिया में उन्होंने सचेतन मन और अवचेतन मन की भूमिका भी समझायी।
संस्थान की कार्य संचालिका साध्वी दीपा भारती जी ने श्री नीरज कुमार को उनके महत्वपूर्ण मार्गदर्शन तथा समय के लिए आभार प्रकट किया और शिक्षक ऐसे श्रेष्ठ विचारों एवं आचरण से विद्यार्थियों को भी लाभान्वित कर पाएं, ऐसी कामना के साथ सत्र को विराम दिया।
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