दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 05 मई 2024 को होशियारपुर (पंजाब) शाखा द्वारा ऊना, हिमाचल प्रदेश में एक प्रेरणादायक भजन संध्या कार्यक्रम आयोजित किया गया। मधुर, सारगर्भित व सुरचित भजनों की शृंखला ने उपस्थित श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक गहराइयों में उतारा। सुवक्ता साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने ईश्वर-अनुभव के आधार पर व अत्यंत उत्साह से उपस्थित समस्त श्रोताओं को अपने भीतर परमात्मा के वास्तविक संगीत का अनुभव करने के लिए प्रेरित किया। ब्रह्मज्ञान- आत्म-साक्षात्कार की शाश्वत विधि, वास्तविक भक्ति की एकमात्र विधि है जो शांति, सुख व ज्ञान जैसे अनमोल रत्नों को प्रदान करती है। जब एक पूर्ण सतगुरु तृतीय नेत्र को जागृत करते हैं, तब शिष्य अपने भीतर उपस्थित दिव्य प्रकाश का दर्शन करता है व अपने अनंत स्वरूप से परिचित होता है।
साध्वी जी ने समझाया कि बाह्य यंत्रों द्वारा बजने वाला संगीत प्रत्येक मानव के भीतर उपस्थित दिव्य संगीत का संकेत मात्र है। यह दिव्य संगीत, जिसे ‘अनहद नाद’ कहा जाता है, शाश्वत है व ईश्वर प्राप्ति का साधन है। केवल एक ब्रह्मज्ञानी ही ध्यान की शाश्वत विधि द्वारा, स्थूल जगत से परे सूक्ष्म जगत की गहराइयों में उतरकर, आत्मिक स्तर पर इस संगीत के आनंद का अनुभव कर पाता है। यह दिव्यता फिर एक ऐसे परिवर्तन को जन्म देती है जिसका समाज, देश व विश्व में विस्तार होता है।
आज आवश्यकता है सद्गुणों से युक्त ऐसे व्यक्तियों की जो एकजुट होकर संतप्त मानवता को पुनर्जीवित करने के लिए कार्य करें। जो प्रत्येक आत्मा को सत्य व आध्यात्मिकता अर्थात ब्रह्मज्ञान का मार्ग अपनाने व इस दुर्लभ मानव जन्म का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करें। हमारे ग्रंथों के अनुसार, पूर्ण सतगुरु साधक को शारीरिक क्षमता व इंद्रियों से परे उसके घट भीतर ही ईश्वर का दर्शन करवा देते हैं। ऐसे गुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान एक भक्त के लिए विकारों व सांसारिक बंधनों के प्रति सुरक्षा कवच बनता है व मोक्ष द्वार की सीढ़ी के रूप में कार्य करता है।
भजन संध्या कार्यक्रम द्वारा एक पूर्ण सतगुरु की अनिवार्यता व ग्रंथों पर आधारित पूर्ण सतगुरु की पहचान को उजागर किया गया। उपस्थित श्रोताओं को आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करते हुए कार्यक्रम का समापन किया गया। सभी श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम से मंत्रमुग्ध हो डीजेजेएस के अथक प्रयासों की बढ़-चढ़ कर प्रशंसा की।