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एक आध्यात्मिक गुरु, मानव की खोई हुई शांति को प्रदान करने हेतु इस धरा पर अवतरित होते हैं। वे इस ब्रह्मांड में जीवन के वास्तविक शक्ति स्रोत्र से व्यक्ति को जोड़ने के लिए जन्म लेते हैं। गुरु अपने शिष्य तक पहुंचने के लिए हर बाधा पर विजय प्राप्त करते हैं। वे अज्ञान से मोहित आत्मा को जागृत कर आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करते हैं। गुरु अपने हर कर्म, वचन व आचरण से शिष्य को एक पवित्र जीवन जीने का तरीका दिखाते हैं। गुरु, शिष्य को जन्म व मृत्यु के बंधन से मुक्त करने में सक्षम हैं। अपनी कृपा के साथ गुरु, शिष्य को सर्वोच्च ज्ञान “ब्रह्मज्ञान” प्रदान कर उसके कल्याण व विकास का मार्ग खोल देते हैं।

The Healing Love of Guru Sealed Fragmented Hearts at Monthly Spiritual Congregation, Rajasthan

ब्रह्मज्ञान, जीवात्मा के जीवन में आने वाली हर समस्या को हल करने की कुंजी है। हालांकि, इस महान ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी एक शिष्य ऐसी दिशा में भटक सकता है जो उसके आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त नहीं है। शिष्य को भक्ति पथ पर सुरक्षित करने के उद्देश्य से हर महीने की तरह इस बार भी परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के सभी शिष्यों की आध्यात्मिक पिपासा को शांत करने हेतु भक्तिपूर्ण आध्यात्मिक कार्यक्रम 11 नवंबर 2018 को जयपुर, राजस्थान में आयोजित किया गया। इस बार कार्यक्रम का विषय रहा- गुरु प्रेम ही विचलित मन व भ्रमित विचारों के निवारण का शक्तिशाली समाधान है।

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, प्रचारकों ने गुरु प्रेम की महत्ता पर विचारों को रखते हुए समझाया कि शिष्य का गुरु के प्रति प्रेम ही मन की शांति का मार्ग प्रदान करता है। गुरु प्रेम शिष्य के जीवन में उसके शब्दों और कर्मों में विनम्रता देता है। शिष्य के भीतर गुरु भक्ति दूसरों की घृणा को भी दूर कर सकती है। गुरु प्रेम द्वारा शिष्य जीवन में केवल कल्याणमय पहलुओं को पोषित करने में सक्षम हो जाता है। शिष्य अपने स्वार्थ और दुर्गुणों पर नियंत्रण पाने की दिशा में कार्यरत हो श्रेष्ठ जीवन की ओर पग बढ़ाता है। शिष्य हर तथ्य और पहलुओं में गुरु को कारण रूप में स्वीकार करने लगता है। गुरु द्वारा शिष्य के जीवन में निर्मित की गयी परिस्थितियाँ मात्र उसके कल्याण हेतु होती हैं। इस तरह, जो शिष्य आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने में सक्षम हैं, वे श्रेष्ठ लक्ष्य की सिद्धि को पाते हैं। अंत में साध्वी जी ने कहा कि एक शिष्य को निरंतर गुरु चरणों में यही प्रार्थना करनी चाहिए कि उसका गुरु के प्रति प्रेम दृढ़ रहे, क्योंकि प्रार्थना ही एक शिष्य के जीवन में आयी विकट परिस्थितियों में मार्गदर्शन करती है।

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