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गुरु-शिष्य संबंध मित्रता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है क्योंकि यह दिव्य प्रेम और ज्ञान पर आधारित है। यह सभी रिश्तों में सबसे ऊंचा और परम पवित्र है। जो इस संबंध को निष्ठावान बन निभाते हैं वह निश्चय ही ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर है। - स्वामी योगानंद परमहंस

परम पूज्य श्री आशुतोष महाराज जी, वर्तमान समय के पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु हैं। वह आध्यात्मिक क्रांति के पुरोधा हैं जो कि नए युग के आगाज़ की दिव्य यात्रा है। उनकी कृपा द्वारा बहुत से दिव्य चमत्कार भी घटित होते हैं। उनकी शिक्षाएं और प्रेरणाएँ जीवन में और उसके बाद भी सभी के लिए मार्गदर्शक हैं। उनकी दयालुता संतप्त हृदयों के लिए दवा समान है। केवल वह ही अति विशेष व समाज के हर वर्ग को एक ही छत्र तले एकत्र कर उन्हें इतिहास रचने के लिए एक साथ आगे बढ़ाने में समर्थवान हैं। दूसरी ओर, एक शिष्य के लिए सतगुरु दुनिया के सभी संबंधों में सर्वोच्च स्थान रखते हैं और केवल उस तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि जब शिष्य गुरु के प्रेम और सेवा के लिए अपनी हर सांस को सशक्त रूप से समर्पित करता है तो यह बंधन अतुलनीय हो जाता है।

1 जुलाई, 2018 को दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम में आयोजित मासिक आध्यात्मिक भंडारे का आयोजन सतगुरु द्वारा प्रदान किए गए हर सुनहरे कृपामय पलों को याद करने के सर्वोच्च उद्देश्य के लिए किया गया। इस कार्यक्रम में गुरु भक्त भारी तादात में इकट्ठे हुए, जो सतगुरु द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर ईमानदारी से चलने का संकल्प धारण किए हुए थे।

श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों ने दिव्य सत्संग विचारों और सुमधुर भजनों की श्रृंखला के माध्यम से ज्ञानगंगा बहाई। हर भक्त गुरु-भक्ति के रंगों में डूबा हुआ नजर आया। वायुमंडल में दिव्य भावनाओं का प्रसार हुआ। शिष्य के समर्पण, सतगुरु के प्रति अडिग व अटूट विश्वास व गुरु सेवा से संबंधित उदाहरणों को प्रस्तुत करती बहुत सी ऐतहासिक गाथाओं को भी रखा गया। जैसा कि पिता समन और पुत्र मुसन की गाथा आती है, जो श्री गुरु अर्जुनदेव जी के शिष्य थे। वे बाहरी तौर पर तो गरीब थे, लेकिन गाथा बताती है कि कठोर परिश्रम और पैसा बचाने के बाद भी जब सेवा कार्य को पूरा करने हेतु वह खाद्य पदार्थ इकट्ठा नहीं कर पाए और विवश हो चोरी की, तो पकड़े जाने पर अपने गुरु की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए मुसन जी ने अपने पिता से अपना सिर काटने का अनुरोध किया। इधर पिता ने भी बिना किसी दुविधा के एक पल भी विचार किए बिना अपने बेटे का सिर काट दिया ताकि कोई पहचान न सके कि यह गुरु भक्त है और सेवा कार्य भी पूरा हो जाए। बदले में, सर्वज्ञाता सतगुरु ने केवल अपने प्रिय शिष्य का नाम भर पुकारकर उसके प्राणों को वापस लौटा दिया। केवल शब्द शिष्य के जीवन में गुरु की महत्वपूर्ण व अहम भूमिका को परिभाषित करने और आत्मा को दिव्यता तक पहुँचाने के उनके श्रेष्ठ तरीकों का पर्याप्त वर्णन नहीं कर सकते।

विभिन्न माध्यमों से सभी ब्रह्मज्ञानी शिष्यों को ज़ोर देकर समझाया गया कि वर्तमान समय गुरु और उनके आदर्शों के प्रति अनुपालन का प्रदर्शन करने का अवसर है। यह समय स्वयं को भीतर से शुद्ध कर संवारते व साधते हुए निरंतर पथ पर आगे बढ़ने का है। यह सेवा, साधना, सत्संग और सुमिरन के प्रति जागरूक होने का समय है।
हर माह आयोजित होने वाले यह मासिक भण्डारे प्रत्येक शिष्य को याद दिलाते हैं कि गुरु की निरंतर कृपा जो हम पर हर पल बरस रही है, वह एक शिष्य को आध्यात्मिक लक्ष्यों की ओर ध्यान केंद्रित करने और पथ पर बाधाओं व परीक्षण के समय भी आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है। भक्तों ने अंतरात्मा में इन भावों को स्थान दिया और नम आँखों से सतगुरु का आभार व्यक्त किया। गुरु भक्तों ने संकल्पवान हो मार्ग पर चलने का संकल्प भी धारण किया। इन आयोजन की शानदार प्रस्तुति दुनिया में अद्वितीय है, जो बड़े पैमाने पर परिवर्तन ला रही है।
 

The Pious Love of Guru Drenched Each Soul with the Nectar of Bhakti at Monthly Spiritual Congregation in Delhi

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