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समकालीन समाज में, यह धारणा प्रचलित है कि मानव जीवन में युवा अवस्था का प्रमुख लक्ष्य धन द्वारा सुख को प्राप्त करना है व वृद्धावस्था में अध्यात्म व भक्ति को पाने का प्रयास करना चाहिए। इसके विपरीत श्री मद्भागवत पुराण में श्री कृष्ण समझाते हैं कि मानव जीवन सीमित समय के लिए इसलिए समय रहते ईश्वर प्राप्ति का यत्न करना अनिवार्य है। मानव जीवन भोग के लिए नहीं अपितु ईश्वर से योग स्थापित करते हुए तन, मन व आत्मा में संतुलन स्थापित करने हेतु मिला है। यह संतुलन मात्र ब्रह्मज्ञान और दिव्य प्रेम द्वारा सार्वभौमिक चेतना से जुड़कर ही संभव है। इसी दृष्टिकोण को समाज के समक्ष रखने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर में 31 मार्च 2019 से 6 अप्रैल 2019 तक आयोजित श्री मद्भागवत कथा का वाचन साध्वी कालिंदी भारती जी ने किया।

The Relevance of a True Guru Reinforced in Shrimad Bhagwat Katha at SBS Nagar, Punjab

साध्वी जी ने कहा कि मानव आंतरिक विकास के अभाव में किसी भी दुर्लभ से दुर्लभ भौतिक वस्तु को प्राप्त करने के उपरांत भी बेचैन और असंतुष्ट रहता है। जब तक मानव मात्र बाहरी प्रयासों पर केन्द्रित रहेगा तब तक वह इससे मुक्त नहीं हो सकता। आंतरिक शांति हेतु ध्यान केंद्रित करने पर संतोषजनक परिणाम मिलता है। आध्यात्मिक विकास पर ही ध्यान एकाग्र करने से जीवन में संतुलन की प्राप्ति सम्भव है। परन्तु इस संतुलन को पाने के लिए मानव को आत्मिक रूप से जागृत होना होगा। साध्वी जी ने बताया कि हमारे सभी आर्ष ग्रंथ इस तथ्य को स्वीकार करते है कि सच्चे आध्यात्मिक गुरु की कृपा के अभाव में ईश्वर प्राप्ति व जीवन की सार्थकता सम्भव नहीं है।

श्री मद्भागवत कथा में वर्णित है कि राजा यदु को एक ब्राह्मण ने दीक्षा गुरु के महत्व के बारे में बताया। दीक्षा गुरु साधक की दिव्य दृष्टि को जागरूक करते हुए उसे आध्यात्मिकता के पथ पर आगे बढ़ाते है। इसी ध्यान प्रक्रिया द्वारा साधक सहजता से भीतर निहित परमात्मा से जुड़ने हेतु सक्षम हो जाता है। पवित्र ग्रंथों में इस प्रक्रिया को ब्रह्म का साक्षात्कार कराने के मार्ग बह्मज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया है। ब्रह्मज्ञान के माध्यम से मानव अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को जानकर और गुरु के निरंतर मार्गदर्शन में सद्भाव और सफलता की यात्रा पर निकलता है। यह प्रक्रिया कोई चमत्कार नहीं बल्कि विशेष विज्ञान पर आधारित है। यह विज्ञान भौंहों के मध्य स्थित पीनियल ग्रंथि की सक्रियता पर आधारित है। पूर्ण सतगुरु ही इसे प्रदान करने में सक्षम है। साध्वी जी ने कथा का समापन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को वर्तमान युग के पूर्ण सतगुरु परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संस्थापित व संचालित संस्थान के साथ अध्यात्म के मार्ग पर चलने का अनुरोध किया व साथ ही उन्हें आमंत्रित भी किया।

The Relevance of a True Guru Reinforced in Shrimad Bhagwat Katha at SBS Nagar, Punjab

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