जुलाई 2004! दैनिक जागरण समाचार पत्र के देहरादून (उत्तराखंड) संस्करण के विशेष संवाददाता लक्ष्मी प्रसाद पंत को एक खबर मिली। उन्हें पता चला कि केदारनाथ मंदिर के ठीक ऊपर स्थित चौराबाड़ी हिमनद पर हिमनद विशेषज्ञों का एक दल परीक्षण कर एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है। जिज्ञासावश वे तुरन्त केदारनाथ धाम से 6 किलोमीटर दूर स्थित चौराबाड़ी हिमनद पर स्थित झील के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि हिम विशेषज्ञ उस झील की निगरानी के लिए यन्त्र लगा रहे हैं। तब वहाँ उपस्थित वरिष्ठ वैज्ञानिक से उन्होंने प्रश्न किया- ‘झील का जलस्तर नापने और हिमनद के अध्ययन का क्या कारण है?’
वैज्ञानिक ने कहा- ‘मंदिर के ठीक ऊपर होने के कारण चौराबाड़ी झील केदारनाथ से सीधे जुड़ा हुआ है। यदि कभी झील का जलस्तर खतरे से ऊपर जाता है, तो केदारनाथ मंदिर और आस-पास के क्षेत्रों में तबाही आ सकती है।’
संवाददाता- क्या इतना पुराना मंदिर भी झील के सैलाब में बह सकता है?
वैज्ञानिक- हाँ, यह संभव है! लेकिन अभी तक झील का स्तर असुरक्षित होने के प्रमाण नहीं मिले हैं। अभी इसका जलस्तर 4 मीटर है। यदि यह 11-12 मीटर तक पहुँचेगा, तब खतरा हो सकता है। हिमस्खलन तो इस क्षेत्र में आम हैं। यदि झील का स्तर बढ़ा, तो हिमस्खलन के साथ मिलकर यह बम फटने से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
संवाददाता- इतना खतरा ! फिर तो काफी दिनों से निगरानी चल रही होगी?
वैज्ञानिक- हाँ, 2003 से।
दरअसल, वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ने के कारण हिमनद से बर्फ पिघल रही थी। इससे कुछ छोटी धाराओं से होता हुआ जल झील में लगातार आ रहा था, जिससे झील का जलस्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा था।
2 अगस्त, 2004 को यह समाचार जब दैनिक जागरण समाचार पत्र में छपा तो चारों ओर हड़कम्प मच गया। समाचार पत्र के कार्यालय में पूछताछ के लिए सैकड़ों फोन आने लगे। वैज्ञानिकों और समाचार पत्र पर इसका खण्डन प्रकाशित करने का दबाव बनाया जाने लगा। झील की निगरानी कर रहे दल को वापस बुला लिया गया और यह परियोजना रोक दी गयी। धीरे-धीरे बात आई-गई हो गयी। झील का जलस्तर बढ़ता गया और केदारनाथ मंदिर के आस-पास बहुत सारे अवैध, अनियमित और अव्यवस्थित निर्माण होते गए।
नौ साल बाद, 16 जून 2013, लगातार बारिश के कारण, सुबह ही, भैरवनाथ वाली पहाड़ी से भूस्खलन होने लगा। इस कारण केदारनाथ से भैरवनाथ मंदिर जाने वाला मार्ग बंद हो गया। क्षेत्र की सभी नदियाँ भी उफान पर थीं। शाम को भूस्खलन हुआ और मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गयी। मंदिर के पास बना हेलीपैड, कई निर्माण और बहुत सारे लोग और जानवर उस जलप्रवाह में बह गए। उसके बाद एक-एक कर नदी में बने दोनों पुल, शंकराचार्य जी की समाधि और दो प्रतिमाएँ, एक स्फटिक लिंग, एक हनुमान जी की मूर्ति और तट पर स्थित सभी आश्रम भी मंदाकिनी के तेज बहाव में बह गए। इस भयानक बाढ़ के बाद कुछ देर शांति बनी रही। बड़ी संख्या में लोगों ने केदारनाथ मंदिर और आस-पास के होटलों, गेस्ट हाउसों, लॉजों में शरण ले रखी थी। जो लोग डर से पहाड़ो और जंगल की तरफ भाग गए थे, वे भी धीरे-धीरे वापस आने लगे। आँखों-आँखों में सबकी रात बीती। भय से कोई भी सो नहीं पाया। सबको यह रात्रि कालरात्रि के सामान लग रही थी। पर धीरे-धीरे यह कालरात्रि बीत गयी और सुबह हो गयी। पर कोई नई घटना नहीं घटी।
लोगों को लगा कि बुरा वक्त निकल गया है। लेकिन यह उनका बहुत बड़ा भ्रम था। 17 जून 2013, सुबह का समय था, अचानक से एक जोरदार आवाज हुई ऐसा लगा मानो कोई पहाड़ टूट गया हो। फिर उसके बाद मंदिर के पीछे से एक जलजला आया और उसने मौत का तांडव कर दिया। चौराबाड़ी झील का तटबंध टूट गया और झील का सारा पानी भयंकर गर्जना करता हुआ केदारनाथ की ओर तीव्र वेग से भागा। यह विशाल जल प्रवाह अपने साथ विशालकाय चट्टानों और बड़े-बड़े पत्थर लेकर आ रहा था। उनमें से एक विशालकाय चट्टान मंदिर के ठीक पीछे आकर रुक गयी। उसने पानी की धार को दो भागों में बाँट दिया, जो मंदिर के दोनों ओर से तबाही मचाता हुआ गुजर गया। मौत का यह तांडव 15-20 मिनट तक चला। केदारनाथ मंदिर के आस-पास जो भी निर्माण था, वह या तो इस जलप्रलय में बह गया या ध्वस्त हो गया। सैकड़ों लोग भी इस जलप्रवाह की भेंट चढ़ गए। मंदिर के चारों ओर कई-कई फीट मलबा जमा हो गया। हर ओर लाशें बिखरी थीं। बहुत सारे शव तो मलबे में पाँच-छह फीट तक धँसे हुए थे। जहाँ तक दृष्टि जाती थी, वहाँ तबाही और बर्बादी का दृश्य था। पर लाखों-करोड़ों भारतीयों की ईश्वर पर श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक- केदारनाथ मन्दिर सुरक्षित खड़ा था, और सुरक्षित थे वे लोग जो मन्दिर के अंदर केदारनाथ की शरण में थे। यह अपने-आप में एक बहुत बड़ा चमत्कार था। आज भी वह विशाल चट्टान मन्दिर के पीछे स्थित है, जिसने प्रचण्ड वेग से आते जल प्रवाह से मंदिर की रक्षा की। अब उसे भीम शिला के नाम से जाना जाता है। चौराबाड़ी झील अब शेष नहीं है।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जल प्रलय में 4400 से ज्यादा लोग मारे गए या लापता हो गए। 2513 भवनों का नामो-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा छोटे-बड़े होटल और गेस्ट हाउस ध्वस्त हो गए। 11091 मवेशी बह गए या मर गए। 9 राष्ट्रीय राजमार्ग, 35 राज्य राजमार्ग, 2385 सड़कें, 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए। आपदा के कारण फँसे हुए 90 हजार लोगों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला।
16 जून को केदारनाथ में हुई इस त्रासदी के 7 वर्ष पूरे हो जाएँगे। पर वर्तमान परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है कि इस त्रासदी से हमने कुछ नहीं सीखा और आने वाले समय में हम इससे भी ज्यादा भयानक और विनाशकारी आपदाओं को आमंत्रण दे रहे हैं। पूरी मानव सभ्यता को खतरे में डाल रहे हैं। इस त्रासदी का एक बहुत बड़ा कारण था- ग्लोबल वार्मिंग। वैज्ञानिक बार-बार बता चुके हैं कि वैश्विक गर्मी के कारण
धरती का तापमान बढ़ रहा है। ध्रुव प्रदेशों और पहाड़ों पर जमी बर्फ पिघल रही है, जिससे नदियों-समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है। केदारनाथ में हुए अवैध निर्माणों ने भी वहाँ के जल, वायु, भूमि को प्रदूषित किया। पर आज भी हम तेज गति सेे धरती के कण-कण को दूषित करने में लगे हैं। उसका दोहन-शोषण जोरों से जारी है।
त्रासदी का अन्य मुख्य कारण था- संबंधित विभागों द्वारा आसन्न खतरे के प्रति सजग होकर उससे सुरक्षा के उपाय करने की जगह तथ्यों को दबाना-छुपाना। जब संभावित खतरे की खबर समाचार पत्र में छपी, तो इसे दबाने के सारे प्रयास किए गए। यहाँ तक कि झील की निगरानी भी बंद करा दी गयी।
कहते हैं, यही काम किया कुछ महीनों पहले चीन की सरकार ने! जब दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस के संक्रमण के कई मामले सामने आने लगे, तो कुछ डॉक्टर और पत्रकारों ने यह बात सार्वजानिक करनी चाही। पर चीन की सरकार ने उन्हें प्रताड़ित किया। उन पर दबाव डालकर खबर का खण्डन करवा दिया। आसन्न खतरे को देखते हुए न तो कोई सुरक्षात्मक उपाय किए, न जनता को सचेत किया, न ही इसे फैलने से रोकने के लिए यात्र प्रतिबन्ध लगाए, बल्कि गलत सूचनाएँ देकर पूरी दुनिया को भ्रमित कर दिया। जब तक विश्व को इसके खतरे का आभास होता, यह वायरस दुनिया के कई देशों में फैल गया और इसने वैश्विक महामारी का रूप ले लिया। आज (23 मई तक के आँकड़े) पूरी दुनिया में कोरोना से लगभग 53-46 लाख लोग संक्रमित हैं और लगभग 3-4 लाख मौतें हो चुकी हैं। दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या लॉकडाउन के कारण घरों में कैद है। कई देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी है।
आज कोरोना महामारी से पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने वाले इंसान को प्रकृति ने एक छोटे से वायरस, जो कि खुली आँखों से देखा भी नहीं जा सकता, के डर से घरों में दुबका दिया है और जब से इंसान घरों में दुबका है प्रकृति ने अपने प्रक्षालन, परिष्करण और नवीनीकरण का अभियान चला रखा है। पर कुछ दिनों बाद जब यह वायरस नियंत्रण में आ जाएगा और मनुष्य पूर्ववत घरों से बाहर निकलने लगेगा, तो क्या पृथ्वी अपने इस नए कलेवर में रह पायेगी या फिर पहले जैसी स्थिति हो जाएगी? बहुत संभावना है कि संसार पूर्ववत पुराने ढर्रे पर ही चलने लगेगा। अभी जो कुछ हो रहा है, उसे भूल जाएगा। क्योंकि इतिहास में हुई महामारियों, आपदाओं के पश्चात् भी यही देखा गया है। मनुष्यों के आचरण को देखकर तो यही लगता है कि उसने अपने गले में ‘हम नहीं सुधरेंगे’ की तख्ती टांग रखी है।
पर अब भी समय है इंसान चेत जाए! यदि नहीं चेता, तो उसे समझ लेना चाहिए कि आने वाले समय में कोरोना से भी बड़ी-बड़ी और महाविनाशकारी महामारियाँ और आपदाएँ उसका इंतजार कर रही हैं।
अब फैसला हमें करना है कि हम ईश्वरीय नियमों का पालन करते हुए प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर उसका दोहन, शोषण और विनाश किए बिना सीमित इच्छाओं और संसाधनों के साथ त्यागपूर्ण जीवन जी सकते हैं या नहीं। यदि इसका जवाब ‘हाँ’ है, तो निश्चय ही हम प्रकृति का प्रेम पाएँगे और सुरक्षित रहेंगे। पर यदि इसका जवाब ‘नहीं’ है, तो फिर हमें अभी से प्रकृति के कहर और महाविनाश के लिए तैयार हो जाना चाहिए। अतः निर्णय हमारा है या तो हम चेत जाएँ या फिर समाप्त होने के लिए तैयार हो जाएँ।
Hame ishwar law ko samjna chahiya or dhyan sadhna ko apna laksh banana chahiye jis se badi se badi apda ko tala ja sake.
Its true that save nature is only the way to save future of human beings. What would happen in future, don't konow ,but what is our responsibility for nature ,we should always keep alert and helpful for it .
Very nice news