Shrimad Devi Bhagwat Katha | DJJS | Divya Jyoti Jagrati Sansthan
Shrimad Devi Bhagwat Katha

Shrimad Devi Bhagwat Katha

Devi Bhagwat Katha aspires to portray the divine play and experience of Ma Shakti which has been a source of inspiration for civilizations since times immemorial.

“जब घट-घट में होगा देवी का जागरण तब ही पूर्ण होगा शक्ति आराधन”

- श्री आशुतोष महाराज जी, संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान

सम्पूर्ण विश्व मे भारत ही वह पावन- पुनीत भूमि है जहां देवी आराधना का प्रधान वैशिष्ट्य है। देवी;  यह शब्द संस्कृत के दिव् धातु से निकला है जिसका अर्थ है प्रकाश, आलोक, ज्योति अर्थात देवी वह जो जीवन को प्रकाशित करें, आलोकित करें। श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है- “देवी माँ किसी एक विशेष युग की ही अवतार नहीं हैं। वे अभी वर्तमान मे भी हैं पर सुषुप्त हैं। प्रकट होने की प्रतीक्षा मे हैं।” अनाचार, पापाचर, आतंक और व्यभिचार के अंधकार मे डूबे इस युग को दिव्यता से प्रकाशित करने का महान साधन है शक्ति आराधन। परंतु यह आराधन केवल बाहरी नहीं है, अपितु जगत जननी जगदंबिका का, शक्ति और ज्योति स्वरूप में, वासना और विकारों रूपी असुरों से ग्रसित मानव अंतर्घट मे प्रकटीकरण है।

श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्ग दर्शन मे दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का अनुष्ठान कर न केवल समाज को माँ की दिव्य लीलाचरित्रों के गूढ़ार्थों से परिचित करता है अपितु अध्यात्म जगत के सर्वोच विज्ञान ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से मानव अंतर्घट मे ब्रह्मस्वरूपा शक्ति का प्रकटीकरण भी करता है।

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, एक विलक्षण सामाजिक - आध्यात्मिक संस्था है, जो विश्व शांति के बृहद लक्ष्य को स्थापित करने हेतु निरंतर कार्यरत है। “मानव मे क्रांति से विश्व शांति” के विशिष्ट vision/ दिगदृष्टि को लेकर संस्थान आत्मिक जागरण से व्यक्तिगत सशक्तिकरण को ही समाज की विभिन्न समस्याओं के अचूक समाधान के रूप में देखता है।

व्यावहारिक रूप से  इसी सिद्धान्त को संस्थान ने अपने 9 सामाजिक प्रकल्पों मे जीवंत किया है और समाज की लगभग सभी समस्याओं के अचूक समाधान समाज के समक्ष प्रस्तुत किए हैं
संस्थान के सामाजिक प्रकल्प

  1. अंतरक्रांति: बंधी सुधार व पुनर्वास कार्यक्रम 
  2. अंतर्दृष्टि: नेत्रहीन एवं विकलांगों के सहायतार्थ
  3. मंथन: सम्पूर्ण शिक्षा कार्यक्रम
  4. संतुलन: लिंग समानता कार्यक्रम
  5. संरक्षण: पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम
  6. आरोग्य: सम्पूर्ण स्वास्थ्य कार्यक्रम  
  7. बोध: नशा उन्मूलन कार्यक्रम
  8. कामधेनु: देसी गौ संरक्षण एवं नस्ल सुधार कार्यक्रम
  9. समाधान: आपदा राहत कार्यक्रम

 

Devi is the name of the eternal power (Shakti) which pervades the entire cosmos. She is the essence of this universe, the guiding light behind all organisms, and the divine energy that conquers all. It is in the arms of the divine mother that universe arises, flourishes and dissolves. It would not be an exaggeration to say that ‘All is Energy and Energy is All’.

On one hand she embraces her children and pours her divine grace on her creation, while on the other, her fierce and aggressive form ensures the devastation of the wrong doers. The divine mother is worshipped primarily in three forms: Goddess Durga, Goddess Lakshmi and Goddess Saraswati. The worship of divine mother in these three forms is symbolic of human evolution, from lower self to higher divinity.

Durga- the Goddess of Shakti bestows energy and is the slayer of all the negative tendencies, which obstruct the evolution of the human being. Lakshmi- the Goddess of Wealth enriches the human self with the wealth of divine qualities- the real treasure of human life. Goddess Saraswati- the Goddess of knowledge is the giver of the divine knowledge, which unlocks the fountain of wisdom within an individual guiding him through the journey of life.

The mother herself represents the ideal state of energy which remains in communion with the all-powerful Brahm. Time and again, she incarnates on this earth to save her creation from the negative forces and inspire her children to traverse the grand journey of life. Her divine play, her divine existence has been a source of inspiration for civilizations since times immemorial. And it for this reason that the wise have worshipped her and sought her divine abode at each and every step of their life.

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