मलिन मन पावन हुआ, श्वासों के सुमिरन मात्र से ही
परित्राता बन गुरु करने आए हैं, रक्षा सबकी।
चलिए, शुरुआत एक पहेली से करते हैं। वह क्या है जो बिगड़ जाए तो हमारा सबसे बड़ा बैरी और सँवर जाए तो परम सहाई? जो इस ओर घूम जाए तो उलझन और बंधन, पर यदि उस ओर रुख कर ले तो आनंद ही आनंद?
यह पहेली बूझना बहुत आसान है... क्योंकि हम सब इसके बिगड़ने के और इस ओर घूमने के बचपन से साक्षी हैं। दो अक्षरों से बना यह छोटा-सा शब्द ‘मन’ बड़ी ही टेढ़ी खीर है। जीवन की सारी उठा-पटक, सारी परेशानियों का श्रेय इन्हीं महाशय को जाता है। निराशा, नकारात्मकता, संशय... ऐसे समस्त पहलू जिनसे सख्त परहेज करना चाहिए- यह श्रीमान् मन हमें इन्हीं में फँसाने के लिए सदैव लालायित रहते हैं और प्रयासरत भी!
पर हम शिष्य इस मलिन मन की सारी कलुषिता धोने में सफल हो सकें- इसी सूत्र को उजागर करती हैं श्री गुरुदेव द्वारा प्रेरित उपरिलिखित भजन की पंक्तियाँ। यह सूत्र है- सुमिरन यानी उस शाश्वत नाम की तरंग के साथ मन को पूर्णतः जोड़ देना, जो गुरुदेव ने हमारे भीतर प्रकट की है! हम भी इस सूत्र को अपने रोम-रोम में बसाकर, सुमिरन के रंग में अपने मन को रंग सकें- यही अनमोल प्रेरणा दे रहे हैं ये अनुभव...
उन दिनों मेरा मन बहुत उदास था। अजीब सी व्याकुलता थी, जिस कारण से मैं परेशान थी। अब महाराज जी तो सबके मन की जानते हैं। हमारे अंदर कब, क्या और किस वजह से उथल-पुथल मची हुई है- इसका पूरा ब्यौरा उनके पास होता है- चाहे हम उनसे कहें या न कहें।
उन्हीं दिनों प्रचार से सम्बन्ध्ति कुछ बातें पूछने के लिए हम महाराज जी के पास गए। महाराज जी हमारे प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे। बातों-बातों में अचानक महाराज जी बोले- ‘तुममें से किस-किस ने हनुमान चालीसा पढ़ी है?’ हनुमान चालीसा हममें से लगभग सभी ने पढ़ी हुई थी।
तब महाराज जी ने पूछा- ‘उसमें यह पढ़ा है- भूत पिशाच निकट नहीं आवै, महावीर जब नाम सुनावै...’
हमने कहा- ‘जी महाराज जी!’
‘ये भूत-पिशाच कौन होते हैं, मालूम है?’- महाराज जी ने हम सबकी ओर देखते हुए प्रश्न किया।
एक बहन बोली- ‘महाराज जी, भूत तो वे आत्माएँ होती हैं, जो मरने के बाद भटकती रहती हैं; जिनका कल्याण नहीं होता।’
महाराज जी- ‘देखो! मन में उठने वाले उन नकारात्मक विचारों, दूषित भावनाओं को भी भूत कहते है, जो यदि चिपक जाएँ तो हमारे चिंतन को चैपट कर देते हैं। तरह-तरह की चिंताओं में हमें उलझाकर, भीतर की स्थिति अस्त-व्यस्त कर देते हैं। और पिशाच कौन होते हैं?’
इस बार हममें से कोई कुछ नहीं बोला। महाराज जी ने समझाते हुए कहा- ‘पिशाच उन्हें कहते हैं जिनकी खोपड़ी उल्टी चलती है। यह उल्टी खोपड़ी उलट-पुलट बातों के कारण हमें भक्ति मार्ग से, हमारे लक्ष्य से भटकाती है। परन्तु ये दोनों ही निकट नहीं आते... कब? जब हम उस सच्चे नाम से जुड़े रहते हैं। (मेरी ओर देखते हुए) किससे जुड़े रहते हैं?...’
मैंने कहा- ‘जी, सुमिरन से!’ महाराज जी हाथ हिलाते हुए प्रसन्न होकर बोले- ‘जहाँ प्रभु का नाम, वहाँ भूत-पिशाच का क्या काम?’
एक बार मैंने महाराज जी से पूछा- ‘महाराज जी, प्रयास और प्रार्थना- सफलता पाने का यही सूत्र है न!’
महाराज जी- हाँ!
मैं- यदि सफलता न मिले, तो इसका मतलब इन दोनों में ही कहीं कोई कमी है?
महाराज जी- हाँ!
मैं- महाराज जी, ‘प्रयास’ का मतलब क्या होता है?... यही न कि हम अच्छे से साधना करें, अपनी सेवाओं को पूरी तरह निभाएँ, हर पल आपकी आज्ञाओं का पालन करें...
मुझे था कि इस बात पर भी महाराज जी ‘हाँ’ ही कहेंगे! लेकिन महाराज जी ने कहा- ‘नहीं! प्रयास का अर्थ होता है- एकनिष्ठ चिंतन!’
वास्तव में, ऐसा कहकर महाराज जी ने मेरी दुविधा के मूल-कारण पर अंगुली रख दी थी। सो, मेरा अगला प्रश्न स्वाभाविक था- ‘महाराज जी, यही तो सारी समस्या है। एकनिष्ठ चिंतन कैसे करें? यह मन जब देखो इधर-उधर भागता रहता है। न चाहते हुए भी दुनिया भर की बातों में हमें उलझाए रखता है। इसलिए आप ही बताइए कि इस अफलातूनी मन को कैसे टिकाएँ?’
महाराज जी- मन को ठहराने का, एक-स्थित करने का, एक-निष्ठ बनाने का एक ही तरीका है- तुम उसे उस ‘एक’ के चिंतन में लगा दो। शाश्वत नाम की मस्ती में इस मन को इतना मस्त कर दो कि इसे इधर-उधर की बातों में रुचि ही न रहे। फिर जब चाह ही नहीं रहेगी, तो यह मन यहाँ-वहाँ भटकने की राह क्यों ढूँढ़ेगा? (थोड़ा रुककर) तो प्रयास और प्रार्थना से क्या समझे? ‘हम ऐसा करें’- यह प्रयास है; ‘गुरुवर, हम ऐसा कर पाएँ’- यही प्रार्थना है। वह सुना है- मन जीते, जग जीत- मन को काबू करने में जो सफल हो गया, वो वास्तव में सफल हो गया।
हमारे मन का बस एक ही तो काम है- नए-नए तरीके अपनाकर गुरु-चिंतन पर हमारी पकड़ ढीली करना। लेकिन मन पकड़ ढीली करना जानता है, तो गुरु महाराज जी नई-नई प्रेरणाएँ देकर उस पकड़ को फिर से मजबूत करना जानते हैं। मेरा यह अनुभव इसी बात की पुष्टि करता है। एक बार मैंने साधना में महाराज जी के सामने अपनी समस्या रखी- ‘महाराज जी, मेरा सुमिरन बार-बार टूटता है। इस कारण से साधना में भी पूरी तरह से ध्यान नहीं लग पाता।’
महाराज जी- एक सुन्दर माला बनानी हो, तो कैसे फूलों का चयन करोगे? टूटे हुए या पूरे पुष्प?
मेरा उत्तर निःसन्देह पूरे पुष्प था।
महाराज जी- हुँ... माला बनाते वक्त उसमें टूटे-बिखरे हुए फूल नहीं पिरोए जाते। पूरे पुष्प लगाए जाते हैं... पूरे फूल वही कहलाते हैं, जिन श्वासों में तुम उस प्रभु पर पूर्णतः एकाग्र हो; उसके सनातन नाम से पूरी तरह जुड़े हो। यानी जिस श्वास में अपने आराध्य, उनके चिंतन के अतिरिक्त और कोई विचार न हो। केवल ऐसी श्वासें ही पूरे पुष्पों की प्रतीक हैं। तुम्हें ऐसी ही श्वासों के फूलों से सुमिरन की माला बनानी है। हर साँस को माला में गूँथते हुए ध्यान रखना है कि वह टूटी-बिखरी न हो। जब साधना में बैठो, तो इस प्रण के साथ कि अपने आराध्य को एकाग्र श्वासों के सुन्दर पुष्पों से बनी हुई माला अर्पित करेंगे। यह प्रण ही तुम्हें, तुम्हारी हर श्वास को प्रभु-चिंतन में एकाग्र करने की प्रेरणा बनेगा। तभी तुम अपने आराध्य की आराधना में सुन्दर माला भेंट कर सकोगे।
इसलिए, आएँ हम सभी हर श्वास में सुमिरन करें, ताकि हमारे परम श्रद्धेय गुरुदेव भी हमारे द्वारा अर्पित माला को देखकर प्रसन्न हो सकें।
Maharaj ji darr lgta hai kahi iss duniyadari me mai apko chod na do.....I need security from your side...
Bahut accha ,pehli baar aisa vichar mila Jeevan ki yahi sachhai h Jmjk
Very nice tanks guru maharaj gi jab bi koi dobida Mann mein chalti hai to aap ose door kar dete ho (jmjk
Jai Maharaj Ji ki. Thanks, mujhe padh kar bahut achhalaga.
Very nice experience & nice way.
Wonder full way to make home the subject Matter. Impressive thought process, but in a easy way, to look upon but in practice deep concentration requires.
Very nice
Apke shri charno mein parnam.mein us parampita ka darshan krna chati hu.mai kru .man jo h vo muje apne pyare pr visvas nhi krne deta Pr muje unki bhakti krni h.mein kya kru mera marg farshan kige.radhe radhe
aisa lag rha ha mhraj ji samne baith k baat kr rhe hn
Guru dav apko purn syaso ki mala jarur arpit karaga jissa ap jald hi smadhi sa vapas aoo
Mere janam janam ke bandhan kat gaye jab mere purn satguru ne mujhe apna lya ..... Or mujhe wo divya Jyoti mere anterghut me dikha di .... Aapko koti koti parnam
Bahut sundar article hai. Meri problem solve kar di Jmjk
Thanks
Nice
I like it and follow it
मन को एकाग्र करने का अत्यंत ही सुंदर तरीका इस लेख में बताया गया है महाराज जी के द्वाराl साधना के दरमियान हम प्रण ले कर के sumiran kare Ki Hamara sumiran Toota Hua Na Ho Tu Hamara man ekagra ho jata hai. जय महाराज जी की
JMJK , Aise Guru ko paa kar Jeevan Sawar Gaya ...Har janam mai sath guruJi tuj sangj hi mera saath rahe,mein savak hun tera aur tu hi mera Naath rahe
jab jab man bhatkta hai mahraj ji hum sbko smbhalne k liye koi na koi sadhan tyaar kar dete jaise es baat yeh kuch anubhav ....jmjk
Excelent thought. It's shows divine experience
Om shree ashutoshay namah.. Beautiful words n precious moment, always remember.... This will gives more concentration.... Jai guru dev ji ki.... Om shree ashutoshay namah........ Samadhi samadhi samadhi hai Mera jeevan to ek samadhi hai Sadhana ishke liye jaroori hai Bin Sadhana samadhi adhoori hai....
मैंने कल आश्रम में भयिया को बोला भयिया आप मुझे सत्संग सुनाना ।।और सत्संग का जो विषय है वो मन हो।। आज मुझे मन के विषय में इस ब्लॉग के माध्यम से विचार मिले।। आशा करता हूँ की आगे भी महाराज जी द्वारा ऐसे ही विचार मुझे मिलते रहेंगे।। जय महाराज जी की।।
जय महाराज जी की, बहुत ही सुन्दर,इसमें एक शिष्य को एक अच्छा साधक बनने के लिए बहुत ही अच्छी प्रेरणा मिलती है, जो कि साधक के साथ-साथ एक सच्चा शिष्य बनने में भी सहायक है ।
Nanak Naam Jahaj hai, chare so utre paar..
Very very nice and useful motivation to do sadhna perfectly and control our mind at any time so that we can walk very easily on the path of spirituality.
Jmjk jivan me dhalna jarori hai
Its really awesome experience to connect with maharaj ji. No doubt Maharaj ji knows our each and every movement outside and inside both... Jai maharaj ji ki
guruvar he gurupita is bhakti ke marg par to chal sakte hi par apki bramhagyn ki dhyan sadhna ki rahapar chalna koi sadharan kam nahi aur o apke bina to namunkin he hi he gurupita ap ka ashirvad hum sub sadhko ke sath rahe
Shri Ashutosh Guru Maharaj ji ki Vaani saakshaat Ishwar ki Vaani hai, Dhanya hein Hum Jo aese Satguru se Hume Brahmgyan ki prapti huyi aur unke Shisya banne ka Hume subh avsar prapt ho saka.
Very motivational blog I like this so much Jai maharaj ji ki...
Agreed no comments
Jmjiki. Very inspirational and motivational .
Yes sir good ok thanks very nice and jmjki ji
अधिकतर साधकों की समस्याओ का समाधान है इसमें, बहुत ही शानदार Thanks so much for this article
बहुत ही सुंदर विचार...