कौनसा नववर्ष मनाएँ? djjs blog

एक विश्लेषण!...

1 जनवरी, 2019... हमने देखा कि सम्पूर्ण विश्व ने एक नए सफर की तैयारी की। पुराने को अलविदा कहकर नए को पूरी जिंदादिली से ‘सुस्वागतम्’ कहा। चहुँ ओर 1 जनवरी को नववर्ष के आगमन के रूप में जोरों-शोरों और हर्षोल्लास से मनाया गया। पर इस सम्बन्ध में हमें ;दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान को कुछ पत्र एवं ई-मेल मिले, जिनमें नववर्ष सम्बन्धी अनेक शंकाएँ उठाई गई थीं। प्रमुखतः तो सभी जिज्ञासुओं ने जानना चाहा कि संस्थान की नववर्ष के सम्बन्ध में क्या अवधारणा है। क्या भारतीय होने के नाते हमारा अपनी संस्कृति को विस्मृत कर अन्य सभ्यताओं के अनुसार 1 जनवरी को नववर्षोत्सव मनाना उचित है?

इससे पहले कि इन जिज्ञासाओं पर संस्थान अपना कोई मन्तव्य रखता, संस्थान द्वारा एक सर्वे किया गया। इसके अंतर्गत हमने आज की आधुनिक पीढ़ी- स्कूल, कॉलेज के छात्रा-छात्राओं से कुछ प्रश्न किए, जैसे- क्या आप जानते हैं कि 1 जनवरी भारतीय संस्कृति के अनुसार नव वर्ष में प्रवेश का सूचक नहीं है? इसके ज्योतिष-ज्ञान के हिसाब से किसी और तिथि पर ही नए साल की शुरुआत मानी जाती है। क्या आप उस तिथि से परिचित हैं? क्या ऐसी ही धूम-धाम से उस तिथि पर भी नववर्ष का उत्सव मनाते हैं? आइए, जानें उनकी राय...

आपकी राय...

  • अब छोड़िए भी यह सब! जनवरी में मनाएँ या फिर भारतीय संस्कृति के हिसाब से- क्या फर्क पड़ता है? इसमें इतना उत्तेजित या फिक्रमंद होने की क्या बात है? अब क्योंकि बचपन से 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाते आ रहे हैं, इसलिए इसकी आदत सी पड़ गई है। आप यह भी कह सकते हैं कि एक तरह की Psychology (मनोवृत्ति) बन चुकी है। अब जैसे चलता आ रहा है, वैसे ही चलने दीजिए। क्योंकि यह कोई इतना important (महत्त्वपूर्ण) मुद्दा नहीं कि इस पर मगज मारी जाए।
    - राकेश सिन्हा
     
  • जी नहीं, बिल्कुल नहीं पता था। आज तक किसी ने बताया ही नहीं था! हाँ, अब पता चला है, तो उसे भी मना लेंगे। हमें इसमें क्या problem (दिक्कत) है? need fun! Anyday! (हमें तो बस मौज-मस्ती चाहिए, किसी भी दिन मिले!)
    -पीयूष अरोड़ा
     
  • नहीं, भारतीय संस्कृति के नववर्ष के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। और न ही मैं इस विषय को लेकर कोई इतनी खास रूचि रखता हूँ। क्योंकि मैं समझता हूँ, जिस बात को पूरी दुनिया मान रही है, हमें भी उसी के मुताबिक चलना चाहिए। अब जैसे सोमवार को सप्ताह का पहला दिन माना जाता है। इसी तरह से मीटर, सेंटीमीटर वगैरह measurement की units (मापदंड की इकाइयाँ) हैं। ये सभी स्टैंडर्ड हैं। दुनिया भर में एक समान रूप में मान्य हैं। इसी तरह 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत मानना- यह भी एक स्टैंडर्ड फिक्स किया गया है। यह एक global concept (वैश्विक धरणा) है। फिर हम ही क्यों सारी दुनिया से हटकर अपना अलग राग अलापें?
    -लक्ष्य मित्तल
     
  • नहीं, मुझे नहीं मालूम कि हमारे नए साल की शुरुआत किसी और दिन से होती है। लेकिन इससे फर्क क्या पड़ता है? मेरे लिए तो यह एक Resolution Day (संकल्प लेने का दिन) है। और संकल्प तो हम जिन्दगी में किसी भी दिन, किसी भी मोड़ पर ले सकते हैं। वही हमारे लिए एक नई शुरुआत होगी। इसके लिए एक date (तिथि) में बंधने की क्या जरूरत है?
    -शिवानी कश्यप

हमारा मन्तव्य...

नववर्ष एक मनोरंजन दिवस भर नहीं!

पूछे गए प्रश्नों के उत्तरस्वरूप हमें अनेक विचार मिले। जैसे कि एक भावक ने कहा कि, ‘नववर्ष’ का यह मुद्दा ही महत्त्वहीन है। इसलिए इसे उठाना फिजूल में बात का बतंगड़ बनाना होगा। परन्तु संस्थान उनके इस विचार से सहमत नहीं। कारण कि यह मुद्दा जितना सतही दिखता है, उतना है नहीं। यहाँ सवाल महज Fun-day (मनोरंजन दिवस) या मौज-मस्ती मनाने के लिए एक दिन चुनने का नहीं है। जीवन गाड़ी में उत्साह का पैट्रोल भरकर, उसे एक नई शुरुआत देने भर का भी नहीं है। दरअसल इस मुद्दे की जड़ें काफी गहराई में उतरी हुई हैं। इसके तल में हमारी मौलिक पहचान का सवाल है। हमारी भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा का सवाल है। यह एक ऐसा यक्षप्रश्न है, जिसका जवाब या तो इस प्राचीनतम संस्कृति में नवप्राण फूंक सकता है या पिफर उसके धूमिल स्वरूप पर एक और परत चढ़ा सकता है। इसलिए भारतीय होने के नाते हमारा इस पर चिंतन करना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, समय की मांग भी है।

देशों की मुद्रा भिन्न, नववर्ष क्यों नहीं?

एक अन्य टिप्पणीकार ने नववर्ष की आगमन तिथि को सबके लिए एक ही रहने देने पर जोर दिया है। उनके अनुसार जैसे मीटर, सेंटीमीटर आदि गणितीय इकाइयाँ विश्व भर के लिए स्टैंडर्ड हैं, उसी तरह यह दिवस भी होना चाहिए। अन्यथा, अपनी सांस्कृतिक धारणाओं के आधार पर इसे अलग से मनाना दुनिया से हटकर खड़ा होना होगा। परन्तु यह दृष्टिकोण भी कितना सुसंगत है? सबसे पहले तो, इस अहम् मुद्दे को गणितीय इकाइयों की श्रेणी में खड़ा करना ही उचित नहीं। दूसरा, कई विषय ऐसे होते हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर एक समान किया ही नहीं जा सकता। राष्ट्र की गुणवत्ता, आदर्श, स्थिति, वातावरण, उसके नागरिकों का जीवन-स्तर आदि अनेक पहलुओं को मद्देनजर रखकर ही उनका निर्धारण करना होता है। अतः हर राष्ट्र के लिए उनका अपना निजी और पृथक मापदंड हुआ करता है। उदाहरण के तौर पर ‘मुद्रा’ (currency) को ही लीजिए। भारत का रुपया है, अमेरिका का डॉलर है, इंग्लैंड का पाउंड है। प्रत्येक देश की मुद्रा भिन्न-भिन्न है। हालांकि इन देशों में आपसी व्यापारिक लेन-देन भी चलता है। खूब सौदे और कारोबार होते हैं। पर तब भी कोई राष्ट्र निजी मुद्रा छोड़कर अन्य को नहीं अपनाता। अपनी मुद्रा से ही लेन-देन करता है। बताइए, फिर नववर्ष जैसे मुद्दे पर अपने निजत्व को खोना कहाँ की बुद्धिमत्ता है? इसे Globally uniform (विश्व में एक समान) करने के लिए अपनी सांस्कृतिक पहचान खोकर दूसरे के रंग-ढंग को ओढ़ना कहाँ तक सही है? इसलिए यदि हम अपनी पारंपरिक गणनाओं के हिसाब से चलते हैं, तो यह अपनी अलग बीन बजाना नहीं होगा। मतलब कि दुनिया से अलग हटकर खड़ा होना नहीं होगा, बल्कि अपनी पहचान के साथ, पूरे स्वाभिमान से, अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।

भारतीय नववर्ष पर अधिक उमंग

एक भावक ने नववर्ष के इस शुभारंभ को एक ‘संकल्प दिवस’ बताया है। निःसंदेह, यह भावना प्रशंसनीय है। नए वर्ष का श्री गणेश शुभ संकल्पों के साथ ही होना चाहिए। परन्तु यहाँ एक बात विचारणीय है। वह यह कि संकल्पवत् होने या उसे निभाने के लिए उत्साह का होना बहुत जरूरी है। उत्साह-उमंग की लहरों पर सवार होकर ही आप अपनी संकल्प-नदी को पार कर सकते हैं। दूसरा हमारी मनोवृत्ति (Psychology) कुछ ऐसी है कि नएपन को देखकर उमंग ज्यादा प्रबल, ज्यादा वेगवान होती है। भारतीय कैलंडर के अनुसार नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है। यह अधिकतर अप्रैल माह में पड़ती है। इन क्षणों में वसुन्धरा बसंती  शृंगार में सजी हुई, अपने पूर्ण यौवन में खिली होती है। हर ओर नवीनता छाई होती है। नए फूल, नए पात, नई शाखाएँ! बयार भी शीतल होती है। न सर्द, न गर्म!

सारांशतः हमारा मानना यही है कि संस्कृति एक राष्ट्र की मौलिक पहचान होती है। यदि यह जीवंत रहे, तो वह राष्ट्र विश्व के विराट मंच पर अपना एक विशिष्ट स्थान बनाए रख सकता है। भारत की तो संस्कृति ही इतनी ओजस्वी है, जिसके कारण सदियों से उसकी एक अनोखी छवि रही है। विश्व की आँखों ने उसे सदा प्रशंसनीय दृष्टि से निहारा है।

इसलिए इन सारे छोटे-मोटे तर्क-वितर्कों को एक तरफ रखकर, केवल और केवल इस महान उद्देश्य के लिए हम सांस्कृतिक गणनाओं के हिसाब से नववर्ष का उत्सव मनाएँ। वह भी अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक रीतियों के अनुसार!

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